भक्तिमय रहने वाले को लगती है दुनिया फीकी
06 May 2010
सिरसा(न्यूजप्लॅस) श्री सनातन धर्म सभा सिरसा के तत्वावधान में आयोजित श्री मद्भागवत सप्ताह ज्ञान महायज्ञ के छठे दिन के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए नैमिषारण्यतीर्थ से पधारे हुए पूज्यपाद दण्डीस्वामी डा. केशवानंद सरस्वती ने कहा कि जो सर्वस्व समर्पण कर सकता है वहीं भगवान की भक्ति प्राप्त कर सकता है और जो भक्तिमय लेता है उसे दुनिया फीकी लगने लगती है। वेद वक्षणा वाणी को जो सुरक्षा प्रदान करे उसे गोबिंद कहते है। भक्ति के विषय में बताते हुए कहा कि भक्ति दो प्रकार की होती है। सकाम भक्ति और निष्काम भक्ति। निष्काम भक्ति से ही मनुष्य पराशक्ति को प्राप्त करता है और इसी से परमात्मा की प्राप्ति है। इससे मिलने के लिए किसी प्रकार यम-नियम एवं वेद-वेदान्त के ज्ञान की आवश्यकता नहीं अपितु सच्ची भक्ति व प्रेम की आवश्यकता होती है। सच्ची भक्ति में ही वह योग्यता है जो ईश्वर दर्शन करवा सकती है। श्री मद्भागवत के राम पच्याध्यायी के वर्णन में कहा गया है कि गोपी का वास्तविक अर्थ होता है जो इन्द्रियों से कृष्ण रूपी रस का पान करें। परमात्मा का समीप्य ही उपासना कही गई है। प्रियतम मिलन में अन्य अवस्था का ध्यान न रहना ही रास कहा जाता है। आध्यात्मिक तन्मयता से परमात्मा प्रेम होने से ईश्वर जीव को अपनी ओर खींचकर अपने में समाहित कर लेता है। यही आध्यात्मिक तन्मय भाव से किया गया प्रेम रास कहलाता है। इसी प्रकार गूढ़ार्थक कथा प्रसंगों द्वारा श्री कृष्ण की रास लीलाओं का वर्णन किया गया। आज के प्रमुख यजमान कुन्दन लाल नागपाल, रामपाल शर्मा, योगेंद्र, अंकुर गर्ग, अशोक तलवाडिय़ा ने पूजा अर्चना की। छठे दिवस की कथा में सभा के प्रधान आरपी शर्मा, कार्यकारी प्रधान नवीन केडिया, सचिव बजरंग पारीक, वरिष्ठ उपप्रधान राम अवतार हिसारिया, प्रो. गणेशी लाल, वैद्य महावीर प्रसाद, पूर्णमल साहुवाला, अर्जुन शर्मा, आज कथा में अभय नंदन जैठा, रमेश महेता, सुरेश मेहता, जनजीर सिंह, कृष्ण सिंगला, रामपाल शर्मा, पूर्ण जोशी, महेश भारती, सतीश हिसारिया, महेश सुरेकां, रामप्रताप घोड़ेला, सुरजा राम नेहरा, खेमचन्द्र गोठवाल, सावित्री देवी, रोशनी देवी आदि के सामाजिक कार्या के प्रति किए गए योगदान को देखकर सम्मानित किया गया।
सिरसा(न्यूजप्लॅस) श्री सनातन धर्म सभा सिरसा के तत्वावधान में आयोजित श्री मद्भागवत सप्ताह ज्ञान महायज्ञ के छठे दिन के प्रथम सत्र को संबोधित करते हुए नैमिषारण्यतीर्थ से पधारे हुए पूज्यपाद दण्डीस्वामी डा. केशवानंद सरस्वती ने कहा कि जो सर्वस्व समर्पण कर सकता है वहीं भगवान की भक्ति प्राप्त कर सकता है और जो भक्तिमय लेता है उसे दुनिया फीकी लगने लगती है। वेद वक्षणा वाणी को जो सुरक्षा प्रदान करे उसे गोबिंद कहते है। भक्ति के विषय में बताते हुए कहा कि भक्ति दो प्रकार की होती है। सकाम भक्ति और निष्काम भक्ति। निष्काम भक्ति से ही मनुष्य पराशक्ति को प्राप्त करता है और इसी से परमात्मा की प्राप्ति है। इससे मिलने के लिए किसी प्रकार यम-नियम एवं वेद-वेदान्त के ज्ञान की आवश्यकता नहीं अपितु सच्ची भक्ति व प्रेम की आवश्यकता होती है। सच्ची भक्ति में ही वह योग्यता है जो ईश्वर दर्शन करवा सकती है। श्री मद्भागवत के राम पच्याध्यायी के वर्णन में कहा गया है कि गोपी का वास्तविक अर्थ होता है जो इन्द्रियों से कृष्ण रूपी रस का पान करें। परमात्मा का समीप्य ही उपासना कही गई है। प्रियतम मिलन में अन्य अवस्था का ध्यान न रहना ही रास कहा जाता है। आध्यात्मिक तन्मयता से परमात्मा प्रेम होने से ईश्वर जीव को अपनी ओर खींचकर अपने में समाहित कर लेता है। यही आध्यात्मिक तन्मय भाव से किया गया प्रेम रास कहलाता है। इसी प्रकार गूढ़ार्थक कथा प्रसंगों द्वारा श्री कृष्ण की रास लीलाओं का वर्णन किया गया। आज के प्रमुख यजमान कुन्दन लाल नागपाल, रामपाल शर्मा, योगेंद्र, अंकुर गर्ग, अशोक तलवाडिय़ा ने पूजा अर्चना की। छठे दिवस की कथा में सभा के प्रधान आरपी शर्मा, कार्यकारी प्रधान नवीन केडिया, सचिव बजरंग पारीक, वरिष्ठ उपप्रधान राम अवतार हिसारिया, प्रो. गणेशी लाल, वैद्य महावीर प्रसाद, पूर्णमल साहुवाला, अर्जुन शर्मा, आज कथा में अभय नंदन जैठा, रमेश महेता, सुरेश मेहता, जनजीर सिंह, कृष्ण सिंगला, रामपाल शर्मा, पूर्ण जोशी, महेश भारती, सतीश हिसारिया, महेश सुरेकां, रामप्रताप घोड़ेला, सुरजा राम नेहरा, खेमचन्द्र गोठवाल, सावित्री देवी, रोशनी देवी आदि के सामाजिक कार्या के प्रति किए गए योगदान को देखकर सम्मानित किया गया।