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सांसद का पुत्र बेचता हैं चाय

लम्बी-लम्बी गाडिया, बड़े-बड़े बंगले और पॉँच सितारा होटलों में पार्टिया यही ठाठ बाठ हैं, इस दोर के सांसदों के 21 वी शताब्दी के सांसद अपने कुर्ते की क्रीज़ ख़राब नही होने देते हैं मर्सडीज में चलते हैं, हजारों रुपए का चश्मा पहनते हैं और गर्मी-सर्दी के मौसम में ऐश परस्ती के लिए विदेशो की सैर पर भी जाते हैं सांसद रहते लग इतना माल बटोरते हैं कि आने वाली कुछ पीढिया आराम से बैठकर खा सके और चुनाव लड़ने पर पानी कि तरह से पैसे बहा सके 12 वी शताब्दी के सांसद अपने बच्चो को मैट्रो सिटी के बड़े कांवेंट स्कूलों में पढने के लिए भेजते हैं कोई सांसद अपने बेटे को पायलट बनाना चाहता हैं तो कोई सांसद अपने पुत्र को डीसी,एसपी और डाक्टर बनना देखना चाहता हैं ऐसे सांसदों की भी कमी नही हैं जो अपनी औलाद को राजनीति के हुनर सेख कर उन्हें सांसद और विधायक बनाने की मंशा रखते हैं लेकिन देश एक सांसद का बेटा न तो डाक्टर बन सका और न ही कोई वकील बन सका सांसद पुत्र को सरकारी महकमे में चपडासी की नौकरी भी नहीं मिली राजनीति की लाखिर भी उसके हाथ में नहीं थी एक सांसद के पुत्र की किस्मत का ही खेल था कि वह चाय बेचने वाला ही बन गया सांसद का पुत्र पहले लोगो के लिए चाय बनता हैं और फ़िर चाय से बने प्यालो को ट्रे में डालकर लोगो तक पहुंचता हैं वह अकेला ही दुकानों से खाली गिलास भी उठाकर लाता हैं और फ़िर लोगो के झूठे बर्तन भी धोता हैं एक सांसद पुत्र की यह दास्ता हैरान कर देती हैं कर्नल नगरपरिषद के एंट्री गेट पर चाय बेचने वाला विजय आम चाय बेचने वाला ही नज़र आता हैं लेकिन इस बात की ख़बर किसी को नहीं कि विजय के पिता एक जमाने में उतर प्रदेश के अलीगढ से सांसद रह चुके हैं उतरप्रदेश के हाथरस में रहने वाले विजय के पिता ज्योतिस्वरूप 1962 में अलीगढ से बाबा साहिब बीआर आंबेडकर की रिपब्लिकन पार्टी से सांसद रह चुके थे विजय के पिता जब सांसद बने तब विजय एक साल का ही था 1981 में जब विजय के पिता की मौत हुई तब विजय 19 साल को नौजवान हो चुका था लेकिन काम के नाम पर उसके पास कुछ नहीं था विजय ज्यादा पढ़-लिख भी नही सका और काम की तालाश में अलीगढ से हरियाणा के फतेहबाद आ गया विजय से पाँच साल तक फतेहबाद में मीनाक्षी काटन फैक्ट्री में नौकरी की 1984 में विजय करनाल आ गया और उसने यहाँ लिबर्टी शूज में नौकरी की करीब 6-7 साल यहाँ नौकरी करने के बाद उसने नौकरी छोड़ दी विजय ने करीब 8 साल तक बैंक आफ इंडिया की शाखा के बाहर चाय का खोखा लगाकर चाय बनने का कार्य किया और करीब एक साल पहले उसे वहां से भी उठा दिया गया पिछले एक साल से विजय नगरपरिषद के एंट्री गेट के पास चार-पाँच फ़ुट जगह पर एक काउंटर लगा चाय बेचने का कार्य करता हैं नगरपरिषद में किसी को इस बात का पता नहीं हैं कि विजय के पिता एक ज़माने में सांसद रह चुके हैं विजय नगरपरिषद के कर्मचारियों के लिए भी एक आम चाय बेचने वाला ही हैं और उसे लोग अंदाज़ में बुलाते हैं और चाय भेजने का ऑर्डर भी देते हैं विजय को अपने काम पर कोई ऐतराज नहीं हैं और वह कहता हैं कि जो किस्मत ने उसे बनाना था बना दिया बच्चो को पढ़ाना चाहता हैं विजय विजय इन दिनों हांसी रोड के पास राजिवपुरम में अपनी पत्नी और तीन बछो के साथ रहता हैं विजय भले ही ख़ुद पढ़-लिख नही सका लेकिन उसकी बेटी कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से एमसीसी कर रही हैं एक बेटा बीए दितीय वर्ष का छात्र हैं और उसका एक बेटा 11 वी में पड़ता हैं विजय का सपना अपने बच्चो को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाने हैं विजय ने प्रेसवार्ता को बताया हैं कि उसका एक भाई बरेली नगरपरिषद में कार्यकारी अधिकारी हैं और एक भाई हाथरस गाँव में ही जूतों की दुकान चलाता हैं

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