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हरियाणा में बढता घटता रहा जाटों का वर्चस्व

चंडीगढ़ (प्रैसवार्ता) राजनीतिक दल 'जातिवाद' को राष्ट्रीय एकता के लिए कितना ही घातक बताएं, लेकिन सच यह है कि सभी राजनीतिक दल चुनाव में जातीय समीकरणों को ही सबसे ज्यादा अहमियत देते हैं। इतना ही नहीं, सभी जातियों की भी यही अभिलाषा रहती है कि उन्हें विधानसभा व लोकसभा में अधिकतम प्रतिनिधित्व मिले। हरियाणा 'जातिवाद' से ग्रस्त राज्यों में अव्वल नम्बर पर रहा है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार, आर्यसमाज की जोरदार मौजूदगी व विकास के सभी दावे इस 'जहर' के आगे बौने पड़ जाते हैं। हरियाणा 1 नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। तक इसकी विधानसभा में कुल 54 सदस्या थे। सही मायने में दूसरी विधानसभा ही नवहरियाणा की अपनी विधानसभा थी, जिसके लिए 9 फरवरी 1967 को चुनाव हुए। दूसरी विधानसभा से लेकर ग्यारहवीं विधानसभा तक के परिणामों पर नजर डालें तो जातीय आधार पर प्रतिनिधित्व का आंकड़ा सिद्ध करता है कि ताकतवर जातियों में अपना वर्चस्व बढ़ाने को प्रवत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है। दूसरी विधानसभा जो मुश्किल से पंद्रह महीने चली में सर्वाधिक जनसंख्या वाली जाट जाति के 23, बनिया 13, पंजाबी 8, यादव 7, ब्राह्मण 2, रोड 2, सिख 1, बिश्रोई 1 व दलित 15 विधायक थे। दूसरी विधानसभा की कुल संख्या 81 थी। तीसरी विधानसभा के लिए बारह व चौदह मई, 1968 को मतदान हुआ। चुनाव के बाद जो तस्वीर सामने उभरी, उसमें जाट 22, पंजाबी 8, बनिया 10, यादव 7, ब्राह्मण 3, मुस्ल्मि 3, गुर्जर 3, राजपूत 3, रोड़ 2, सिख 1, बिश्रोई 2, सैनी 2 व दलित पंद्रह की संख्या में विधायक बने। राज्य की चौथी विधानसभा के लिए 11 मार्च, 1972 को चुनाव हुए। इस बार जाट 23, बनिया 11, पंजाबी 8, यादव 6, ब्राह्मण 5, मुस्लिम 2, गुर्जर 2, राजपूत 1, रोड़ 2, सिख 2, बिश्रोई 2, सैनी 1, कंबोज 1 तथा 15 दलित विधायक बने। 5वीं विधानसभा में विधायकों की संख्या नब्बे हुई तो राज्य की प्रभावशाली जाट जाति के विधायकों की संख्या में काफी वृद्धि हुई। इस बार 32 जाट, 8 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 3 राजपूत, 1 रोड़, 3 सिख, 1 बिश्रोई, 2 कंबोज, 17 दलित विधायक बने। इस चुनाव में आरक्षित सीटों की संख्या 17 हो गई थी। छठी विधानसभा के लिए मई 1982 में चुनाव संपन्न हुए। इस बार भी जाट विधायकों की संख्या 32 ही थी, जबकि बनिया समुदाय की संख्या पांचवी विधानसभा का आधा रह गई, यानी कि महज 4 विधायक 10 पंजाबी, 4 यादव, 5 ब्राह्मण, 4 मुस्लिम, 2 गुर्जर, 3 राजपूत, 5 सिख, 1 बिश्रोई, 1 सैनी, 1 कंबोज व 17 दलित विधायक चुने गए। सिख इस विधानसभा में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में विधायक चुने गए। सातवीं विधानसभा में 26 जाट, 4 बनिया, 9 पंजाबी, 5 यादव, 8 ब्राह्मण, 4 मुस्लिम, 2 गुर्जर, 1 राजपूत, 1 खाती, 4 सिख, 2 बिश्रोई, 3 सैनी, 2 कंबोज, 1 सुनार, 1 कुम्हार व आरक्षित सीटों पर 17 दलित विधायक चुने गए। आठवीं विधानसभा जिसका कार्यकाल 1991 से 1996 तक रहा, में जाटों की संख्या बढ़कर 31 हो गई। इसमें 4 बनिया, 11 पंजाबी, 4 यादव, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 5 गुर्जर, 3 राजपूत, 1 रोड़, 2 सिख, 1 बिश्रोई, 2 सैनी व 17 दलित विधायक चुने गए। जबकि 9वीं विधानसभा जो 2000 तक चली में 28 जाट, 9 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 6 ब्राह्मण, 3 मुस्लिम, 2 गुर्जर, 3 राजपूत, 2 सिख, 3 बिश्रोई, 2 सैनी, 1 कंबोज, 1 सुनार व 17 दलित विधायक चुने गए। दसवीं विधानसभा में 32 जाट, 4 बनिया, 11 पंजाबी, 6 यादव, 3 ब्राह्मण, 3 मुस्लिम, 4 गुर्जर, 2 राजपूत, 1 रोड़, 3 सिख, 2 बिश्रोई, 2 सैनी व 17 दलित विधायक विधानसभा पहुंचे। इस विधानसभा में 32 जाट विधायकों में से 21 इनेलो के खाते में तो 6 कांग्रेसी थे। हविपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और आरपीआई के एक-एक जाट विधायक थे। 2 निर्दलीय विधायक भी जाट समुदाय से चुने गए। ग्यारहवीं विधानसभा में जाटों की संख्या घटकर 26 हो गई। इस बार गुर्जर, 6, ब्राह्मण 8, बनिया 4, यादव 5, बिश्रोई 3, पंजाबी 8, मुस्लिम 3, राजपूत 4, दलित 17 तथा अन्य से 6 विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे।

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