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आजाद उम्मीदवारों को पसंद नहीं करते सिरसा के मतदाता

सिरसा(प्रैसवार्ता) हरियाणा के 9 आजाद विधायकों का कांग्रेस में शामिल होना राज्य के जागरूक मतदाताओं को, जहां कुछ सोचने पर मजबूर कर रहा है, वहीं आजाद प्रत्याशी के रूप में विधायक बनने का स्वप्र देखने वालों के अरमानों पर किसी ग्रहण से कम दिखाई नहीं देता। हरियणा राज्य में चुनावी बिगुल बज चुका है, मगर अभी तक सिरसा विधानसभा क्षेत्र ही एक ऐसा स्टेशन है, जहां से एक आजाद उम्मीदवार की गतिविधियां जरूरी देखी जा सकती है। इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक हुए दस विधानसभा चुनाव में 201 आजाद उम्मीदवारों ने चुनावी दंगल में अपना भाग्य अजमाया, परन्तु मात्र एक को छोड़कर 195 की जमानत तक जब्त हो गई, जबकि चार जमानत बचाने में कामयाब रहे। जिससे स्पष्ट संकेत है कि क्षेत्र के लोगों की आजाद उम्मीदवार कभी पसंद नहीं रहे। सिरसा क्षेत्र में दस बार हुए चुनाव में 5 बार मुकाबला सीधा रहा, जबकि पांच बार तिकोना। 1967 में हरियाणा बनने उपरांत पहली बार हुए विधानसभा चुनाव में लक्ष्मण दास अरोड़ा भारतीय जनसंघ की टिकट पर विजयी हुए थे, जो वर्तमान भंग विधानसभा के 2005 को चुने गये कांग्रेसी विधायक थे। 1968 और 1972 में प्रेम सुख दास खजांची कांग्रेस टिकट पर, 1977 में का. शंकर लाल जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में, 1987 में हजार चंद कम्बोज लोकदल की सीट पर, 1991 में लक्ष्मण दास अरोड़ा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में, 1966 में प्रो. गणेशी लाल भाजपा सीट से तथा 2000 तथा 2005 में लक्ष्मण दास अरोड़ा ने कांग्रेस के चिन्ह पर जीत हासिल की। कांग्रेस दस विधानसभा चुनाव में पांच बार, निर्दलीय के रूप में लक्ष्मण दास अरोड़ा, भाजपा, लोकदल, जनता पार्टी तथा भारतीय जनसंघ ने एक-एक बार सिरसा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। इतिहास गवाह है कि सिरसा के मतदाताओं ने कभी भी प्रलोभन और भय के चलते मतदान नहीं किया, बल्कि वोट खरीदने वालों को ''रिवर्स गेयर'' लगाया है। राजनीति के इस गढ़ सिरसा के गांव-गांव में राजनीति की ब्यार बहती है-जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में, जिस पार्टी का झंडा टांग लिया, उसे बदला नहीं जाता, भले ही कोई भी परिस्थिति क्यों न उत्पन्न हो जाये। यही कारण है, कि चुनाव मैदान में उतरने वाले हर आजाद उम्मीदवार को कई हथकंडे अपनाने के बावजूद भी बुद्धिजीवी मतदाता विधानसभा तक पहुंचने का अवसर नहीं देते। वर्तमान हालात में देश-प्रदेश के मतदाता काफी जागरूक हो चुके हैं और लोकसभा चुनाव में उनके निर्णय ने इस बात की पुष्टि कर दी, कि मतलबी और मौकापरस्त लोगों को विधानसभा/लोकसभा के नजदीक भी नहीं फटकने दिया। वैसे तो राजनीति में सब कुछ संभव है। भविष्य में होने जा रहे सिरसा विधानसभा क्षेत्र के चुनावों में मतदाता क्या भूमिका निभाएंगे, इस प्रश्र का उत्तर तो प्रश्र के गर्भ में ही है।

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