कांग्रेस का घटता ग्राफ बदलाव का सूचक
चंडीगढ़(प्रैसवार्ता) हरियाणा राज्य में 13 अक्तूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर चुनावी सरगर्मियां काफी बढ़ गई है और सभी राजनीतिक दलों के प्रत्याशी अपनी अपनी जीत को लेकर दावे कर रहे है-जबकि कुछ विधानसभा क्षेत्रों में अन्य दलों के साथ साथ निर्दलीय प्रत्याशियों का पलड़ा भारी दिखाई देता है। राज्य की वर्तमान राजनीतिक पर नजर दौड़ाने, कांग्रेस के स्टार प्रचारकों सोनिया गांधी, व डा. मनमोहन सिंह की जनसभाओं में फीकी उपस्थिति, कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों का चुनावी दंगल में डटे रहना और कई क्षेत्रों में भीतरी घात से कांग्रेस का खिसकना ग्राफ बदलाव के सूचक का संदेश देने लगा है। हरियाणा में, जैसा लोकसभा चुनाव में चुनावी माहौल था, अब ऐसा दिखाई नहीं दे रहा, क्योंकि बढ़ती मंहगाई, बिजली-पेयजल का संकट, लचर कानून व्यवस्था, कांग्रेस की अंदरूनी फूट, मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की बढ़ती संख्या और राज्य में कांग्रेसी चुनाव कमान भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और दीपेन्द्र सिंह हुड्डा तक सीमित रहने से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के उत्साह में कमी आई है, क्योंकि श्री हुड्डा के मुख्यमंत्री काल में सरकारी तंत्र का पार्टी कार्यकर्ताओं की अनदेखी, टिकट वितरण से असंतोष, कई निवर्तमान विधायकों का क्षेत्र बदलना और कई कांग्रेस दिग्गजों के क्षेत्र परिसीमन आयोग की चपेट में आने से कांग्रेसी कार्यकर्ताओं मे लोकसभा चुनाव जैसा उत्साह गायब देखा जा रहा है- जबकि इनैलों के चुनावी वायदे और पहले प्रत्याशियों की घोषणा से इनैलों लाभांवित हो रही है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 58 क्षेत्रों में पहले तथा इनैलों 31 क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर रही थी, परन्तु अब कांग्रेसियों की आपसी लड़ाई से कांग्रेस ओर इनैलों का आंकडा बदलता नजर आने लगा है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की कांग्रेस से अलविदाई लेकर नया संगठन बनाना भी कांग्रेस को महंगा पड़ता दिखाई दे रहा है। राज्य के एक दर्जन से ज्यादा ऐसे क्षेत्र है- जहां कांग्रेस के निवर्तमान विधायकों को अपने क्षेत्रों और कार्यकर्ताओं की उपेक्षा झेलनी पड़ रही है। बाहरी प्रत्याशी में करीब एक दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं के रोष से जुझते दिखाई देते है। चुनावी परिणाम क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा, परन्तु लोकसभा के चुनाव परिणाम विधानसभा चुनाव में अपना रूख अवश्य बदलेंगे, इससे इंकार नहीं कि या जा सकता। कांग्रेस की सोच थी कि राज्य के विपक्ष के पास मुद्दों की कमी रहेगी, मगर कांग्रेसी सोच गल्त साबित हुई। विपक्ष के पास, जहां मुद्दों की लंबी कतार है, वहीं कांग्रेस की आपसी फूट और बागी उमीदवारों को भी किसी मुद्दे से कम नहीं माना जा सकता। कांग्रेस की स्टार रैलियों में भीड की कमी से चिंतित कांग्रेस राहुल गांधी और सोनिया गांधी की कुछ जनसभाएं राज्य के विभिन्न विभिन्न क्षेत्रों में करवाने जा रही है, ताकि कांग्रेस अपने घटते जनाधार पर अंकुश लगानें में सफल हो सके।