क्या किरण चौधरी नई पार्टी का गठन करेगी।
भिवानी(प्रैसवार्ता)पूर्व मंत्री और मुख्यमंत्री पद की दावेदार तोशाम की विधायिका तथा सांसद ऋुति चौधरी की माता श्रीमती किरण चौधरी को मंत्रीमंडल में स्थान न दिया जाना, कांग्रेसी सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा रहा, क्योंकि किरण चौधरी के समर्थकों ने कांग्रेस छोडऩे का दबाव बना शुरू कर दिया है। भिवानी संसदीय क्षेत्र से अपनी बेटी ऋति का विरोध करने वाले कांग्रेसी विधायकों को राजनीतिक झटका देकर ऋुति को संसद तक पहुंचाने में सफल रही किरण चौधरी ने विधानसभा चुनाव में भिवानी, बादड़ा और लोहारू में कांग्रेस प्रत्याशियों की जड़े खोखली करके यह स्पष्ट कर दिया, कि भिवानी संसदीय क्षेत्र में वह सब कुछ करने में सक्षम है। हार को जीत और जीत को हार में बदलने का दावा रखने वाली किरन चौधरी की अनदेखी से भले ही भूपेन्द्र हुड्डा खेमा खुश हो, मगर किरन चौधरी की अनदेखी काफी महंगी पड़ सकती है। ''प्रैसवार्ता'' को मिली जानकारी अनुसार करीब आधा दर्जन कांग्रेसी विधायक उनके समर्थन में आ सकते हैं, जब वह अपनी अलग पार्टी का गठन कर ले और समर्थकों का दवाब भी श्रीमती चौधरी पर बराबर पड़ रहा है, कि वह कांग्रेस से अलविदाई देकर बंसी लाल की तर्ज पर चलते हुए नये झंडे तथा डंडे के साथ राजय व्यापी अभियान शुरू कर दें। कांग्रेस आलाकमान के करीबी होने की पोल भी अब सामने आ गई है, क्योंकि कांग्रेस आलाकमान ने किरन चौधरी को टिकट वितरण में कोई अहमियत दी और न ही हुड्डा के मंत्रीमंडल गठन में। दरअसल मुख्यमंत्री श्री हुड्डा ने एक समझी रणनीति मुताबिक अपने विरोधी मांगे राम गुप्ता, ऐ.सी. चौधरी, वीरेन्द्र सिंह, सुश्री शैलजा, राव इन्द्रजीत, सांसद अरविन्द शर्मा, किरन चौधरी, अवतार भडाना इत्यादि को ऐसे राजनीतिक झटके दिए थे, जिनसे उभर पाने में काफी समय लगेगा। वीरेन्द्र सिंह, किरन चौधरी के साथ एक मंच पर रहे रणदीप सुरजेवाला ने 'रिवर्स गेयर' लगाकर हुड्डा मंत्री मंडल में स्थान प्राप्त कर लिया है, जबकि वीरेन्द्र सिंह चुनाव हार गये हैं। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस टिकट से वंचित तथा पराजित प्रत्याशियों का सहयोग लेकर कांग्रेस के विरूद्ध बगावती स्वर तेज कर नई पार्टी के गठन उपरांत हुड्डा सरकार के लिए सिरदर्दी पैदा करने की योजना बननी शुरू हो गई है। निर्दलीय विधायकों से सौदेबाजी करके हुड्डा मुख्यमंत्री पद हथियाने में जरूर सफल हो गये हैं, मगर राजनीतिक तस्वीर बदली हुई है। विपक्ष मजबूत है, सत्तारूढ़ कांग्रेस मजबूर है, बागी उम्मीदवारों ने कांग्रेस की लुटिया डुबोई, तो अब बगावती सरकार को ज्यादा समय तक सूई की नोक पर टिकी कांग्रेस को चलने में बाधक बनेंगे। कुछ निर्दलीय विधायक उन्हें मिले पदों से संतुष्ट नहीं है। हुड्डा सरकार की कितनी लंबी उम्र होगी, निर्दलीयों का कब तक समर्थन रहेगा, हजकां सुप्रीमों से हाथ मिलायेगी या फिर हजकां के विधायकों का हृदय परिवर्तन करवाया जायेगा, कांग्रेसी विधायकों को कैसे संतुष्ट किया जायेगा, किरन चौधरी एण्ड कंपनी से कैसे सुरक्षा इत्यादि की जायेगी, अनेक ऐसे प्रश्र हैं, जिनके समाधान और संतुष्टि के लिए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कड़ी परीक्षा से गुजरना होगा।