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बाल दिवस के उपलक्ष्य में

ज्यादा नहीं बहुत कुछ करें

वहां एक बच्चे को मैंने देखा जो सांवले से रंग का, बाल मिट्टी से भरे, नाक बह रही, कोई पोंछने वाला नहीं, रोता-बिलखता हुआ नंगा खड़ा था। उसकी आंखों से निकलते हुए आंसू कांच के मनकों की भांति चमक रहे थे। उसके इन कांच के आंसुओं और जिस ढंग से वह जीवन के शुरूवाती दौर से गुजर रहा था, मेरा हृदय द्रवित हो उठा और मुझे बड़ा ही खेद मालूम हुआ। पास जाकर उस बच्चे का मुंह साफ किया, उसे चुपाया और आंसू पोंछे। बच्चे की यह स्थिति मेरे मन-मस्तिष्क में घर कर गई और मेरे विचारों का उबाल रूक न सका जिसने शब्दों का रूप ले लिया और मेरे हृदय की खलबली, धुंधली और अज्ञात अंशकाओं ने मुझे बाल-दिवस पर कुछ अपने विचार लिखने पर मजबूर कर दिया। क्या हमने कभी उन निर्धन लाचार और अनाथ बच्चों के लिए अपना ध्यान एकाग्र किया है जो गरीबी रेखा में पलते बढ़े होते हैं, मिट्टी में खेलते हैं, गन्दगी में खाना खाते हैं और फिर कूड़े के ढेर को अपना बिस्तर बना कर वहीं उसी पर सो जाते हैं। स्वयं जीवन की व्यस्तता के कारण शायद हमारा ध्यान कभी उस तरफ नहीं गया। जब हम ऐसे लाचार, मासूम बच्चों के विषय पर सोचते हैं, तो हमारे अंदर से एक विशेष प्रकार की बेचैनी होने लगती है। क्या इन गरीब और अनाथ बच्चों के जीवन मे अमीरों के बच्चों की तरह जीवन यापन करने का सुख नहीं? हमारे बच्चे जहां एक तरफ स्कूल में पढऩे जाते हैं, वहीं दूसरी तरफ गरीब बच्चे हमारे घर के कामों में हमारा हाथ बंटाते हैं। हमारे दिमाग में कभी यह बात नहीं आई कि इनका भी मन पढ़ाई करने का करता होगा.. कि हम इनको भी काम करवाने के साथ-साथ पढ़ाई करना सिखा दें इनके लिए भी दो किताबें कापी खरीद दें। हमारे बच्चों से यदि घर के आंगन में कोई खाने की वस्तु गिर जाए तो हम उन्हें मना करते हैं, कि अब यह खाने योग्य नहीं है। क्या हमारा ध्यान कभी उनके खटाई हुए चेहरों की तरफ आकर्षित नहीं हुआ? वह बच्चे भी उन्हीं पंचतत्वों के बने हैं जितने अमीरों के बच्चे। फिर इतना भेद क्यों? उनमें भी कोई एक महान आत्मा का निवास होगा। जिसे हम पहचान नहीं पा रहे। बच्चे तो देश का उज्जवल भविष्य होते हैं। हमारे समक्ष अब्राहिम लिंकन का उदाहरण सर्वोपरि है। क्या इन गरीब बच्चों के जीवन, का सूरज कभी चढ़ेगा या फिर पूरा जीवन अंधकारमय ही रहेगा? हमारे देश के सर्वप्रथम प्रधान मंत्री प. जवाहर लाल नेहरू जिनका जन्मदिन (14 नवंबर) बाल दिवस के रूप में धूमधाम से मनाया जाता है। बच्चों को बेहद प्यार करते थे। गरीब और अनाथ बच्चों के लिए बहुत प्रशंसनीय कार्य किए। अनेक स्कूल खुलवाएं, अनाथालय बनवाए, अस्पताल खुलवाएं, जहां बच्चों का मुफ्त इलाज होता था। उनको हर त्यौहार पर मिठाइयां, कपड़े बांटने, इसके अतिरिक्त अनेक कार्य किए जो अविस्मरणीय हैं। क्या अब इन मासूम और अनाथ बच्चों की बांह पकडऩे के लिए कोई चाचा नेहरू पैदा होंगे या फिर ये बच्चे यूं ही रोते-बिलखते, नंगे, मारे-मारे फिरते रहेंगे। ऐसी स्थिति का अंदाजा लगाकर कितनों के हृदय में लाचार बच्चों के प्रति सहानुभूति और उनके भविष्य के लिए शुभकामनाओं की लौ जाग उठेगी, यह कहना मुश्किल है। किन्तु लोगों को इसके प्रति जागरूक किया जा सकता है। बच्चों के प्रिय चाचा नेहरू अगर आज इन बच्चों की दयनीय स्थिति को देखें तो क्या उनकी रूह नहीं कांप उठेगी? उन्होंने इन गरीब, अनाथ और लाचार बच्चों के लिए कितने ही सपने संजोए थे जो हम अमीरों के पैरों तले रौंद दिये गये हैं। आओ! आज चाचा नेहरू जी के जन्म दिवस पर हम सब प्रतिज्ञा करें कि गरीब बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए ज्यादा नहीं पर बहुत कुछ करें। जिनके हाथों में हमारे देश के उज्जवल भविष्य की बागडोर है। -जसप्रीत कौर 'जस्सी' ,लुधियाना

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