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बुजुर्ग नहीं, अब युवा गुडग़ुड़ा रहे हुक्का

भिवानी(प्रैसवार्ता)सोंधी सोंधी मिट्टी और चौपालों को छोड़कर हुक्का अब शहरी युवाओं की पसंद बन गया है। कभी जिसे बुजुर्गों की शान समझा जाता था अब उनकी गुडग़ुड़ाहट गांव की चौपालों को छोड़ शहरों में सुनाई दे रही है। शहरों में युवाओं ने ऐसे ठिकाने बना रखे हैं जहां ये सिर्फ हुक्का पीने आते हैं। इन युवाओं में अधिक संख्या उनकी है जिनके पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण क्षेत्र से जुड़ी हुई है। इसलिए सीधे तौर पर कहा जाए तो बदलते समय के साथ अब हुक्का भी रंग और रूप बदल युवाओं की संगत में आ गया है। एक जमाना था, जब पंचायत में प्रधान तो गांव की चौपालों में बुजुर्गों का हुक्का गुडग़ुड़ाना स्टेटस सिंबल था। गांवों की चौपालों में सजने वाली महफिलों में हुक्के की गुडग़ुड़ाहट के साथ ठहाकों की आवाजें सुनाई देती थीं। इन्हीं के बीच गांव के छोटे मोटे आपसी विवाद भी निपटा दिए जाते थे। बुजुर्गों की इस महफिल का हिस्सा युवा भी बनते थे तथा सेवा भाव से बुजुर्गों के लिए हुक्के की चिलम भी भरते थे। इस बहाने वे भी एकआध कस लगा लिया करते थे। गांव की यह तस्वीर अब यादों में सिमटती जा रही है। ग्रामीण उमेद सिंह लांबा, रामफल सिंह के सामने हुक्के का जिक्र होते ही वे पूरी तरह फ्लैशबेक में चले जाते हैं। वह बताते हैं, कि वो भी एक जमाना था जब गांव की चौपालों में बैठकर बुजुर्ग हुक्का गुडग़ुड़ाते थे। गांव में हुक्कों के साथ चलने वाली चौपालों ने गांवों में काफी हद तक माहौल ठीक बनाए रखा था, लेकिन चौपालों के साथ हुक्का और गांव का वो प्यार से रहने वाला माहौल भी खत्म होता जा रहा है। हरियाणा के कई शहरों में ऐसे क्लब हैं जहां युवा सिर्फ हुक्का गुडग़ुड़ाने आते हैं। शहरों में न चौपाल होती है न ही बुजुर्ग। युवाओं की टोली जहां लग्जरी कुर्सियों पर बैठकर युवा शान के साथ अब हुक्का बजाते देखे जा सकते हैं। भिवानी के इंम्प्रूमेंट ट्रस्ट मार्केट में भी युवाओं ने हुक्का क्लब स्थापित किया है। जहां ग्रामीण परिवेश का यह हुक्का गुडग़ुड़ाया जाता है। मार्केट के युवा अश्वनी, सोमवीर, विनोद और अनिल ने बताया कि बीड़ी सिगरेट से ज्यादा आनंद हुक्के में आता है। उन्होंने बताया कि इससे शरीर को ज्यादा नुकसान नहीं होता। स्टाइलिश हुक्के की बिक्री बढ़ी: कम वजन का स्टाइलिश हुक्का अब युवाओं का स्टेटस सिबंल बना हुआ है। वजन के लिहाज से ये हुक्के बहुत हल्के होते हैं। इनका वजन 300 से 400 ग्राम तक का होता है, जबकि देशी हुक्कों का वजन 10 किलोग्राम तक होता है। हुक्का विक्रेता राज चांगीया ने बताया कि शहर में स्टाइलिस हुक्कों की बिक्री पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है। एक अन्य दुकानदार संजय ने बताया पहले ग्रामीण क्षेत्र से हुक्के के खरीदार बहुत आते थे, लेकिन अब पहले जैसी बात नहीं रही।फलों के फ्लेवर वाला तंबाकू होता है इस्तेमाल:जहां देशी हुक्कों में सामान्य तंबाकू ही प्रयोग में लाया जाता है, वहीं युवा स्टाइलिस हुक्कों में फलों के फ्लेवर से बने तंबाकू का इस्तेमाल होता है, जिसमें लीची, नींबू, पपीता, अनानास, गुलाब आदि के फ्लेवर शामिल हैं। शहर के गोपीराम पंसारी ने बताया कि शहरों में हुक्के का चलन बढऩे से फ्लेवर वाले तंबाकू की बिक्री भी बढ़ी है।

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