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हरियाणा के लिए सिरदर्द बना स्वाइन फ्लू

डॉ. एम.पी. भार्गव की खास रिपोर्ट
ऐलनाबाद(सिटीकिंग) पिछले चार-पांच वर्षों से विश्व में भिन्न-भिन्न प्रकार के संक्रमण रोगों के फैलाव ने लोगों को भयभीत करके रख दिया है, कभी बर्ड फ्लू तो कभी डेंगू, कभी एड्स तो कभी हैपाटाइटिस। ऐसे भयानक रोगों ने देश-विदेश में हजारों जिदगियां लील दी है, फिर भी देश व प्रदेश की सरकारें इसके प्रति इतनी गंभीर नहीं है, जितनी की होनी चाहिए। वर्तमान समय में 'स्वाइन फ्लू' नामक एक और भयानक बीमारी ने अपने खूनी पंजे देश-विदेश में फैला दिए है, जिसे लेकर जनजीवन गंभीर चिंता से व्यवस्त हो गया है। वर्ष 2009 में फैले इस स्वाइन फ्लू के कारण हजारों की जान जा चुकी है। देश में भी अनेक लोगों की जिंदगी स्वाइन फ्लू ने लील दी है, परंतु अब यह बीमारी हरियाणा प्रदेश के लिए भी बड़ा सरदर्द उभर कर सामने आई है। नित्य नए मामले प्रदेश के भिवानी, रोहतक, हिसार करनाल, यमुनानगर, सोनीपत, इंद्री आदि सहित अन्य जिलों व कस्बों से सामने आ रहे है, ऐसे में सरकार की गंभीरता स्वाइन फ्लू के प्रति यही से पता लग जाती है कि हरियाणा की प्रयोगशालाओं में स्वाइन फ्लू की जांच की सुविधा ही बहुत कम है। ऐसे तो हो लिया प्रदेश के लोगों का स्वास्थ्य सुरक्षित। सरकार गंभीर नहीं है, खामियाजा भुगत रहे है प्रदेशवासी। गत तीन महीनों के भीतर देश में 250 से उपर लोग अपनी जान इस भयंकर बीमारी के कारण अपनी जान गंवा चुके है। यह इस बात का पर्याप्त संकेत है कि महामारी के फैलने का खतरा यहां भी बढ़ रहा है। हालांकि सरकार अपनी ओर से सुरक्षा और उपचार के हर तरह से इंतजाम होने की बात कह रही है, परंतु इंतजामात कितने है, इससे हम सब वाकिफ है। उल्लेखनीय है कि स्वाइन फ्लू का संक्रमण बढ़ाने में सबसे ज्यादा खतरा हवाई अड्डों से है। दरअसल दूसरे देशों से आने वाले संक्रमित मरीज भारत में इस वायरस के वाहक बन रहे हैं। इसे देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने विदेश ओर नागर विमानन मंत्रालय को स्वाइन फ्लू के फैलाव को रोकने के लिए कदम उठाने को कहा है। उमनें उन विमान सेवाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना भी शामिल है, जो इस घातक बीमारी को रोकने संबंधी नए दिशा-निर्देशों का पालन नहीं करते हैं। एहतियात के तौर पर विमानों में यात्रियों को तीन मिनट का एक संदेश भी सुनाया जा रहा है। अगर स्वाइन फ्लू के फैलने के बारे में जाना जाए तो पता चलता है कि यह इन्फलएंजा वायरस भी आम मौसमी की फ्लू की तरह फैलता है। संक्रमित व्यक्ति को बात करते या खांसते-छींकते समय उसके मंह या नाक से निकलने वाली छोटी बूंदें सांस के जरिए दूसरे व्यक्ति के भीतर पहुंचने से इसका संक्रमण हो सकता है। इस वायरस से संक्रमित कोई चीज जैसे टिश्यू पेपर या दरवाजे के हैंडिल के संपर्क में आने के बाद अपनी नाम या आंख छूने से संक्रमण हो जाता है। चिकित्सकों की माने से स्वाइन फ्लू से ग्रस्त व्यक्ति में भी ठीक उसी तरह के लक्षण दिखाई देते है, जैसे कि सामान्य मौसमी फ्लू से संक्रमित होने पर नजर आते है। चिकित्सकों के अनुसार स्वाइन फ्लू के दौरान भी अन्य फ्लू की भांति रोगी को बुखार चढ़ती है, सारे शरीर में सुस्ती रहती है, भूख बंद हो जाती है, नाक से पानी का बहता है, गले में खरखरी बनी रहती है। हर दम खांसी आती है, उल्टी मितली बनी रहती है, दस्त लगने शुरू हो जाते है आदि। स्वाइन इन्फ्लूएंजा ए (एच1, एच2) वायरस से होने वाला संक्रमण व्यक्ति के श्वसन-तंत्र को सर्वाधित प्रभावित करता है। खांसते और छींकने से वायरस हवा के जरिए एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक चूंकि वायरस का जेनेटिक म्यूटेशन (आनुवांशिक उत्परिवर्तन) संक्रमण के दौरान जारी रहता है। इसलिए मुश्किल से और मुश्किल होता चला जाता है। चूंकि इस संक्रमण के इलाज के लिए अभी तक कोई वैक्सीन (टीका) विकसित नहीं किया जा सका है, इसलिए बचाव के लिए सावधानियां बरतना ही श्रेयष्कर है। चिकित्सकों के अनुसार स्वाइन फ्लू से संक्रमित व्यक्ति जब खांसता या छींकता है तो वह अपने आस-पास की सतह पर वायरस फैला देता है। उसके इस्तेमाल किए गए टिश्यू पेपर या बिना धुले हाथों से वायरस फैलते है। इसलिए सतह को साफ रखना जरूरी है। डिटर्जेंट व पानी के साथ घर प्लेटफार्म, टायलेट, किचन, गेट के हैंडिल आदि को साफ करना चाहिए। इसके अतिरिक्त नियमित अंतराल में अपने हाथ धोने, छींकने-खासने के बाद टिश्यू पेपर को कचरे के डिब्बे में डालना, अपनी नाक या आंखों को हाथ से न छूना, बचाव के लिए मास्क का प्रयोग करना चाहिए। बच्चे बीमार है तो स्कूल न जाने दे। हाथों की सफाई रखनी चाहिए। किसी के साथ हाथ मिलाने या गले मिलने से बचे। खूले में न थूके। बिना डाक्टर की सलाह लिए दवा न लें। भीड़भाड़ वाले स्थानों पर जाने से बचे। खूब पानी, पौष्टिक आहार और पर्याप्त नींद लें। चिकित्सकों का कहना है कि इसके अलावा अनेकों ऐसी सावधानियां रख स्वाइन फ्लू से बचा जा सकता है।
फ्लू की नई किस्म
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सुअर (स्वाइन), पक्षी (एवियन) और मनुष्य तीनों के जीन मिलने पर बना इन्फ्लूएंजा ए (एच1, एच2) वायरस सामान्य स्वाइन फ्लू के वायरस से अलग है और वायरस की नवीनतम किस्म है। इसका पिछले वर्षों में नुष्य में संक्रमण का कारण बने इन्फ्लूएंजा वायरस से कोई संबंध नहीं है। इस वायरस की उत्पत्ति कहां हुई, इसका जवाब पुख्ता तौर पर वैज्ञानिक को अभी तक नहीं मिला है। चूंकि मैक्सिकों में ही इस वायरस से मनुष्य संक्रमित होने का पहला मामला सामने आया है। इसलिए माना जा रहा है कि वहीं इसकी उत्पत्ति हुई। सामान्य फ्लू के मामले दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में पहले ही दर्ज किए जाते रहे है। सर्दी के मौसम में हर साल विशेष रूप से शीत प्रदेशों में इस संक्रमण की चेपट में आने वाले अधकांश लोग बिना किसी इलाज के एक या दो सप्ताह में ठी हो जाते हैं, जबकि स्वाइन फ्लू वायरस का संक्रमण किसी भी मौसम में फैल सकता है और सामान्य फ्लू की तुलना में बड़े पैमाने पर लोगों को प्रभावित करता है। सभी आयु वर्ग के लोग इसकी चपेट में आ सकते है।
महंगी जांच बनी गले की फांस
स्वाइन फ्लू की महंगी जांच लोगों के लिए गले की फांस बनी हुई है। देश में स्वाइन फ्लू की जांच के लिए प्रति सैम्पल दस हजार रुपए का खर्च आता है, क्योंकि इसकी जांच की सामग्री अमरीका में बनती है, इसलिए यह एक महंगी प्रक्रिया है, ऐसे में गरीब या मध्यमवर्गीय परिवार से संबंधित लोग इसकी जांच करवाने में बचते है, जबकि होना ऐसा चाहिए कि यह जांच प्रदेश सरकार की ओर से नि:शुल्क मुहैया करवाई जाए।
बीमारी से महामारी बनी स्वाइन फ्लू
40 वर्ष बाद दुनिया में एकबार फिर स्वाइन फ्लू के रूप में महामारी का प्रकोप फैला है। महामारी भी ऐसी जो अब तक लाइलाज है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे 11 जून 2009 को महामारी घोषित कर दिया। 11 मार्च 2009 को मैक्सीको में पहली बार स्वाइन फ्लू के मामले उजागर हुए। 25 अप्रैल 2009 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस समस्या को वैश्विक चिंता बनाया। 27 अप्रैल 2009 को महामारी खतरा बनी। अलर्ट स्तर चार किया गया। 29 अप्रैल 2009 को महामारी के संकेत। अलर्ट स्तर पांच किया गया। 30 अप्रेल 2009 को स्वाइन इन्फ्लूएंजा ए (एच1, एच2) कहा। 11 जून 2009 को अलर्ट स्तर छ:किया गया। दुनिया महामारी की चपेट में। 19 जून 2009 तक करीब 90 देशों में इस बीमारी के आए 44 हजार 257 मामले सामने, 180 लोगों की हुई मौत।
कितना कारगर है मास्क?
स्वास्थ्य संगठनों ने स्वाइन फ्लू मरीजों के करीबी संपर्क से आने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को मास्क पहनने की सलाह दी है, लेकिन आम आदमी के लिए रोजों के कामों के दौरान मास्क पहनने की सिफारिश नहीं की गई है, आखिर क्यों? दरअसल रोजमर्रा के कामों के दौरान फेसमास्क जैसी जरूरत नहीं। स्वाइन फ्लू का वायरस संक्रमित सतह को छूने या फिर रोगी के खांसने-छींकने के दौरान उसके एकदम पास खड़ा रहने से फैलता है। इसलिए जब तक आप रोगी के एकदम पास नहीं खड़े हो, मास्क पहनने या न पहनने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
स्वाइन फ्लू की चिकित्सा
फिलहाल इस मर्ज से निपटने के लिए सिर्फ टैमीफ्लू दवा मौजूद है। इसकी बाजार में खुली बिक्री पर सरकार ने अभी प्रतिबंध लगाया हुआ है। कई देशों में इसका टीका विकसित करने का काम चल रहा है, जिसमें भारत भी एक है। तुलसी पत्र, काली मिर्च, अदरक का काढ़ा लेने से रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है तथा स्वाइन फ्लू का खतरा नहीं रहता। रोजाना इसका सेवन जहां पर स्वाइन फ्लू का संक्रमण है अवश्य करना चाहिए।

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