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विवाह की विचित्र प्रथाए

वंश जैन की खास रिपोर्ट
विवाह की अलग-अलग प्रथाएं प्रचलित हैं। दुनिया के अन्य देशों में भी विवाह की अनेक प्रथाएं हैं जिनमें से कई प्रथाएं बहुत ही विचित्रता को लिए हुए दिखाई देती है। बिहार के 'विरहारे' तथा पैठू प्रथा गुजराती भीलों में गोला घेड़ों प्रथा जब बस्तर के गोंड जाति के लोगों में घोटुल प्रथाएं आदि विचित्रता से परिपूर्ण प्रथाएं हैं। पैठू प्रथा के अन्तर्गत लड़कियों का प्रभाव प्रबल होता है। लड़कियां जिस लड़के को पसंद करती हैं, उसके घर पर शादी से पहले ही जाकर बलपूर्वक रहने लगती हैं। बाद में उनका विवाह कराया जाता है। गोला घोड़ो प्रथा के अनुसार होली के अवसर पर स्वयंवर का आयोजन किया जाता है। इसमें एक खंभे के ऊपर सिरे पर थोड़ा सा गुड़ और एक नारियल बांध दिया जाता है। गांव की सारी महिलाएं एवं लड़कियां खंभे के चारों ओर नृत्य करती हैं। पुरूष वर्ग महिलाओं के चारों ओर एक दूसरा घेरा बहादुर नाचना शुरू करते हैं। जो बहादुर उस घेरे को तोड़कर उस खंभे में से गुड़ और नारियल को निकाल लाता है उसे विजेता मान लिया जाता है। वह विजेता वहां उपस्थित कुंवारियों में से किसी को भी अपनी पत्नी बना सकता है। उस खंभे तक पहुंचने के लिए पुरूषों को वहां उपस्थित महिलाओं के अन्य संघर्षों के साथ ही झाडू से पिटाई खाना, दांत काटना आदि परेशानियों को भी झेलना पड़ता है। आम्ब्रन एवं उकीमास द्वीप समूह में विवाहोपरांत लड़के को लड़की के यहां पर तब तक रहना होता है जब तक वह अपनी पत्नी का मूल्य ससुर को चुकता नहीं कर देता। इस दौरान लड़का अपनी पत्नी से शारीरिक संबंध स्थापित नहीं कर सकता। सेरांग में कन्या विदाई के दौरान ही वर से दहेज वसूलने की प्रथा है। टोरेस में लड़की का पिता अपने दामाद से दहेज के रूप में उसकी होने वाली सभी संतानों की मांग करता है। उत्तरी गढ़वाल एवं कुमाऊं जिलों की भोटिया जनजाति में लड़कों को अपना जीवनसाथी चुनने में पूरी स्वतंत्रता होती है। आपसी लेन-देन एवं अन्य कार्य सभी सामान्य ढंग से होते हैं। जब बारात लड़की वालों के घर आती है, लड़का बिना कोई रस्म अदा किये ही लड़की को डोली में बिठा लेता है और अपने साथ ले जाने को उद्यत होता है। इस अवसर पर लड़की और लड़के वालों में परस्पर युद्ध होता है। यह युद्ध नकली होता है जिसके अंत में लड़की वालों की पराजय होती है। उसके बाद लड़की की विदाई होती है। लगभग डेढ़ माह के बाद दोनों परिवारों में समझौता होता है और उसके बाद नाच गाने के बीच प्रीति-भोज का आयोजन होता है। अब्राहम की बुक ऑफ डिलाइट में एक विचित्र विवाह का उल्लेख मिलता है। पुस्तक के अनुसार रोम की मगहा नामक जनजाति की लड़कियों का विवाह दस वर्ष के अन्दर वाली उम्र में ही कर दिया जाता है। लड़का विवाह की रस्मों को पूरा करके बिना वधू को लिए ही अपने घर चला जाता है। विवाह के बाद लड़की से शारीरिक संबंध बनाने का कार्य उसका पिता या भाई द्वारा ही किया जाता है। जब लड़की गर्भवती हो जाती है, जब उसका पति दुबारा बारात लेकर आता है और अपनी पत्नी को विदा करके ले जाता है। गर्भवती हुए बगैर लड़की को ससुराल विदा नहीं किया जाता। जोविश विवाह के अन्तर्गत कन्या को तेरह साल तक मांगलिक मानकर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहां विवाह के लिए कन्या का समर्थन आवश्यक माना जाता है इसलिए लड़की को खुश करने के लिए अनेक उपक्रम किये जाते हैं। इजराइल में अपने कुल देवता को खुश करने के लिए लड़की को सात दिन तक कुलदेवता के समक्ष निर्वस्त्र रहना होता। उस दौरान वह किसी भी पुरूष को देख तक नहीं सकती। उस घर में केवल औरतों का ही आना जाना होता है। बंगाल और असल के ममन सिंह, ग्वालपाड़ा और कामरूप जनपदों के गारी आदिवासी नरमुंड शिकारी के रूप में जाने जाते हैं। इन जातियों का समाज मातृसत्तात्मक होता है। इसमें कन्यापक्ष विवाह के लिए वरपक्ष की तलाश करता है। जिस लड़के के गले में खोपडिय़ों की माला में सर्वाधिक खोपडिय़ां दिखाई देती हैं, उसे ही वर के रूप में प्राथमिकता दी जाती है। वर का चयन जितना विचित्र होता है, उससे भी अद्भुत इनकी विवाह प्रथाएं होती हैं। खस जनजाति की विवाह प्रथा की विशेषता यह है कि वहां बहुपति विवाह होता है। सामान्यत: यहां के परिवारों में जब किसी एक भाई की शादी होती है तो शेष भाई भी उसे ही अपनी पत्नी मान लेते हैं। एक स्त्री सभी भाईयों की पत्नी समझी जाती है। इसे द्रोपदी विवाह का नाम दिया जाता है। यहां की महिलाएं द्रोपदी को देवी के रूप में मानती हैं एवं उसकी पूजा अर्चना करती हैं। रोम में मई माह को विवाह के लिए अपशकुन एवं जून के प्रथम सप्ताह को विवाह के लिए शुभ माना जाता है। विदाई के लिए शुभ माना जाता है। विदाई समय दूल्हा दुल्हन को झटके के साथ खींचता है। विदाई के समय दुल्हन को चांदी के तीन सिक्के दिए जाते हैं।

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