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गौरक्षा नामधारी सिख संप्रदाय के आधारभूत सिद्धांतों में शुमार है: संत रघुबीर

18 जनवरी 2010
सिरसा(सिटीकिंग) गौरक्षा नामधारी सिख संप्रदाय के आधारभूत सिद्धांतों में शुमार है। गौ के प्रति सम्मान का यह भाव प्रथम सिख गुरू अर्थात श्री गुरू नानक देव के समय से ही सिखों में आ गया था। सतगुरू राम सिंह कूका के नेतृत्व में यह और प्रखर हुआ और आज भी सतगुरू जगजीत सिंह की अगुआई में नामधारी संप्रदाय के लोग गौरक्षा के लिए बढ़ चढ़ कर काम कर रहे हैं। यह टिप्पणी संत रघुबीर सिंह कू का ने चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन के कार्यक्रम हैलो सिरसा में कें द्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान से बातचीत में की। स्थानीय नामधारी विद्यालय के पूर्व मुख्याध्यापक संत रघुबीर सिंह और नामधारी स्त्री विद्यता सभा की सिरसा इकाई की प्रधान श्रीमती प्रितपाल कौर रविवार को अठारह सौ बहत्तर में गौरक्षा और देश की स्वाधीनता की जंग में कुर्बान हुए छियासठ कूकों के बलिदान पर विमर्श कर रहे थे। दोनों नामधारी विद्वानों ने नामधारी संप्रदाय की मान्यताओं और अतीत के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से चर्चा की। संत रघुबीर सिंह ने बताया कि सिख राज के बाद बिखरी सिखी में नई जान फूंकने के लिए सतगुरू राम सिंह कूका ने नए सिरे से सिखों को अमृत छका कर उन्हें संगठित करने का काम प्रारंभ किया था। सतगुरू राम सिंह कूका ने अठारह सौ सत्तवन में अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग, बॉकाट और स्वदेशी सरीखे उन शस्त्रों का प्रयोग करने की पहल की जो बाद में महात्मा गांधी और उनके समकालीन नेताओं ने और अधिक प्रभावशाली ढ़ंग से आजादी की जंग में इस्तेमाल किए। उन्होंने बताया कि सतगुरू राम सिंह ने अपने शिष्यों को अंग्रेजो की संस्थाओं में शिक्षा न ग्रहण करने, उनकी बनाई सड़कों पर न चलने और उनके द्वारा बनाए गए वस्त्रों का परित्याग कर स्वदेशी कपड़े पहनने की प्रेरणा दी। इस लिहाज से उनकी दूरदृष्टि का लोहा तमाम लोग मानते हैं। सतगुरू राम सिंह के अनुयाइयों ने अंग्रेजों के खिलाफ सिर उठाना प्रारंभ किया तो अंग्रेजों ने योजनबद्ध तरीके से गौवध को बढ़ावा देने का काम करना आरंभ किया। इसी प्रक्रिया में गौवध के खिलाफ उनके कूकों ने मालेरकोटला पर हमला बोल कर बूचडख़ानों के संचालकों का काम तमाम कर दिया। इनमें से अड़सठ कूकों को अंग्रेजों ने बंदी बना लिया और सत्रह और अठारह जनवरी के दिन इनमें से छियासठ को तोपों से उड़ा दिया गया। अपने गुरू के प्रति आस्था और उनके सिद्धांतों के प्रति अडिग़ एक भी कूका मौत को इतने करीब पाकर टस से मस नहीं हुआ। इन शहीदों में दो महिलाएं और एक दस बरस का बच्चा भी था। रघुबीर सिंह ने बताया कि सतगुरू राम सिंह कूका के नेतृत्व में कूका आंदोलन ने जिस तेजी से जड़ें जमाई, उससे घबराई अंग्रेज हकूमत ने उन्हें बंदी बनाकर रंगून की जेल में डाल दिया था। उन्होंने जेल से भी स्वाधीनता की लड़ाई को मार्गदर्शन करने का सिलसिला जारी रखा। बकौल संत रघुबीर सिंह अपने देश व उसकी परंपराओं के प्रति यह समर्पण भाव आज भी नामधारी संप्रदाय के लोगों में कायम है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि नामधारी संप्रदाय ने सतगुरू राम सिंह की शिक्षाओं के अनुरूप स्त्री के सम्मान के लिए कार्य किया। विधवा विवाह के लिए पहलकदमी की और भ्रूण हत्या के खिलाफ दो डेढ़ सदी पहले मुहिम छेड़ी। उन्होंने कहा कि विवाह आदि समारोहों में सादगी बनी रहे, इसके लिए संप्रदाय में आज भी खासा ध्यान रखा जाता है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि नामधारी लोग श्री गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ भी करते हैं और पूरा आदर-मान भी करते हैं, मगर इस संप्रदाय में देहधारी गुरू की पंरपरा है। सतगुरू जगजीत सिंह को गुरू नानक देव की पंरपरा में ही गुरू माना जाता है और सभी नामधारी उनमें दृढ़ आस्था रखते हैं। उन्होंने बताया कि संप्रदाय का मुख्यालय पंजाब के लुधियाना जिले में भैणी साहब में हैं।स्त्री विद्यक सभा की अध्यक्ष श्रीमती प्रितपाल कौर ने कहा कि हालांकि समय के साथ नामधारी संप्रदाय में भी कुछ लोग अपनी परंपराओं से दूर हो रहे हैं, मगर इस बात के भी भरपूर प्रयास जारी हैं कि लोग अपनी विरासत को न भूलें। इसके लिए नई पीढ़ी को यत्नपूर्वक पूर्वजों की बलिदानी और पवित्र पंरपरा का ज्ञान और भान कराया जाता है।

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