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सतगुरू राम सिंह कूका पर हुई विशेष बातचीत

21 जनवरी 2010
प्रस्तुति: प्रवीण कुमार व चेतन सिंह
नामधारी संप्रदाय के संस्थापक सतगुरू राम सिह कूका अपने समय के महा समाजसुधारक, धर्मगुरू और स्वाधीनता सेनानी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों के खिलाफ तो संघर्ष किया ही, वे विदेशी शासकों के विरूद्ध भी एक कारगर संग्राम के सूत्रधार भी बने। उनकी विचारधारा से अंग्रेज इतना परेशान हुए कि उन्हें बंदी बनाकर बर्मा के रंगून भेज दिया गया। सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम हैलो सिरसा में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ सतगुरू राम सिंह के प्रकाशोत्सव पर श्रोताओं से रूबरू कामरेड स्वर्ण सिंह विर्क ने यह टिप्पणी की। विर्क ने बताया कि उनकी अगुआई में नामधारी सिखों ने स्वाधीनता के पहले संग्राम में अपने ही अनूठे अंदाज में शिरकत की। उन्हें स्वदेशी, बॉयकाट और असहयोग को स्वाधीनता संग्राम के शस्त्र के रूप में प्रयोग करने वाला पहला स्वाधीनता सेनानी भी कहा जा सक ता है। बकौल र्विक गुरू राम सिंह ने समाज में फैली कुरीतियो को समाप्त करने व सिख पुर्नजागरण के लिए नामधारी पंथ की सृजना की। वे गरीबों के मसीहा थे। उन्होने गरीब व गऊ दोनो की सहायता व उत्थान के लिए विशेष कदम उठाए। उन्होंने अपने जीवन काल में यह संदेश दिया की धर्म को सिर्फ माथा ही न टेको बल्कि उस द्वारा बताई गई शिक्षाओं पर अमल करो। प्रस्तुत है केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिह चौहान व नामधारी साहित्य पर हाल ही में एक ग्रंथ का लेखन करने वाले कामरेड स्वर्ण सिह विर्क के बीच हुए वार्तालाप के संपादित अंश :
नामधारी आंदोलन की शुरूआत कहां से हुई?
यह एक बहुत बड़ा आंदोलन था। इसके जनक सतगुरू राम सिह जी । उनके प्रेरणा स्त्रोत हजारे निवासी गुरू बालक सिह थे। नामधारी आंदोलन का सूत्रपात बारह अप्रैल अठरह सौ सतावन को बैसाखी के दिन जिला लुधियाना के छोटे से गांव भौणी राइयां और भौणी आलां से हुआ। जो कि आज भौणी साहिब के नाम से विख्यात है। वर्तमान नामधारी गुरू जगजीत सिंह भी वहीं निवास करते हैं। सतगुरू राम सिह जी का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था।
सतगुरू राम सिह जी के जीवन के बारे में बताएं?
सतगुरू राम सिह जी का जन्म बीस अप्रैल अठारह सो सौलह में लुधियाना जिले में हुआ। ये एक साधरण दस्तकार परिवार में पैदा हुए। आप जी के पिता जी का नाम जस्सा सिह तथा माता जी का नाम सदा कौर था। आप जी के पिता जी कारीगर लौहार का कार्य करते थे। कारीगर बहुत ही विलक्षण हस्ती का मालिक होता है। क्योंकि मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक कारीगर ते ही सामना होता है। आप जी के माता जी धार्मिक प्रवृति की महिला थे व बचपन से ही वे आप जी को धार्मिक कथाएं सुनाया करते थे। जिसके फलस्वरूप वे आठ नौ वर्ष की आयु में ही गुरू ग्रथं साहिब की बाणी का अध्ययन कर अच्छे ज्ञाता हो गए। वे एक किसान परिवार होने के नाते अच्छे कद काठी के धनी थे। सतगुरू जी ने आठ -नौ वर्ष तक महाराजा रणजीत सिह की फौज में भी कार्य किया।
किस मकसद से नामधारी पंथ चला?
इसका दोहरा मकसद था। इसका पहला उद्देश्य तो श्री गुरू गोबिंद सिह द्वारा स्थापित सिखों की मर्यादाओं को कायम रखना व सिख पुर्नजागरण करना था। साथ ही अंग्रेजों की दासता के खिलाफ स्वतंत्र संग्राम का सीधा और प्रखर उदघोष था।
सिख पुर्नजागरण को सतगुरू राम दास ने किस तरह योजनाबद्ध किया?
सर्व प्रथम तो उन्होंने यह महसूस किया कि सिख दैनिक जीवन में गुरूवाणी का बहुत महत्व है। ग्रंथ साहब में अनेक संतों व गुरूओं की बाणी है। जिसे पढने से जीवन सफल हो जाता है। परन्तु कुछ लोगों द्वारा इसे घर के किसी आलने में सजा कर रख दिया गया था। तब गुरू जी ने घर घर जाकर पवित्र गुरबाणी का आदर सहित प्रकाश किया। उन्होंने यह निश्चित किया की सिख रोजाना सुबह अमृतवेले में उठ कर पाँच वाणीयों का पाठ करेंगे। वो मांस मदिरा का सेवन नही करेंगे व पर नारी गमन नही करेंगे। उन्होनें पराया हक व ब्याज पर पैसे देने के लिए मना किया। उस समय भी कन्या हत्या को राकने के लिए गुरू राम सिंह जी ने सिखों को यह सख्त निर्देश दिए कि कन्या हत्या, लड़की बेचना व बट्टा करने वाले व्यक्ति के साथ नाता नही रखना। सतगुरू राम सिह को नारी मुक्ति दाता के नाम से भी याद किया जाता है।

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