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बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से....

राज्यपाल पद से तिवाड़ी का इस्तीफा
19 जनवरी 2010
ऐलनाबाद(अजय सरदाना) पिछले दिनों सैक्स स्कैंडल में लिप्त होने का अरोप लगने के बाद आंध्रप्रदेश के राज्य नारायणदत्त तिवारी ने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को सौंप दिया। तिवारी का इस्तीफा तेलगू चैनल तेलगू चैनल 'एबी एवं आंध्र ज्योति' के स्टिंग आपरेशन के तहत प्रसारित किए गए एक फुटेज के बाद आया है, जिसमें एक उम्रदराज व्यक्ति को तीन महिलाओं के साथ आपत्तिजनक अवस्था में दिखाया गया है। चैनल के अनुसार वह व्यक्ति तिवारी थे। हालांकि स्टिंग आपरेशन की फुटेज के टैलीकास्ट होने के बाद राजभवन ने प्रदेश हाइकोर्ट में याचिका दायर कर स्टिंग के प्रसारण पर रोक लगाने की मांग की थी, जिस गर्वनर के पद की गरिमा की रक्षा के नाम पर स्वीकार कर लिया गया । इस 3 मिनट 55 सैङ्क्षकड की क्लिप के प्रसारण के बाद तेदेपा, भाजपा, भाकपा समेत कई राजनीतिक पार्टियों की ओर से लगातार तिवारी की बर्खास्तगी की मांग आ रही थी। महिला संगठनों ने भी तिवारी के खिलाफ प्रदर्शन किए थे। यहां तक कि उन्हें पार्टी के भीतर भी आलोचना का सामना करना पड़ रहा था। कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार उनके कथित आचरण से पार्टी को गहरा धक्का लग है और शॄमदगी उठानी पड़ी है। इस बीच तिवारी के वकील रविशंकर ने वीडियो क्लिप को झूठ का पुङ्क्षलदा बताया, जबकि तेलगू चैनल के प्रधान संपादक वेभुरी राधाकृष्णन ने कहा कि उन्होंने जो कुछ भी दिखाया है, उनके पास उसके समर्थन में पुख्ता सबूत है। यह पहली बार नहीं है जब तिवारी किसी महिला से जुड़े विवाद में फंसे हो। कुछ समय पूर्व पेशे से वकीत रोहित शेखर नामक युवक ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए कहा था कि उनका जन्म तिवारी और उनकी मां उज्जवला शर्मा के बीच अतरंग संबंधों के कारण हुआ है। इसकी जांच के लिए उन्होंने तिवारी के डी.एन.ए. टैस्ट की मांग भी की थी, जिसे तिवारी ने ठुकरा दिया था। कोर्ट ने भले ही उस नौजवान की याचिका ठुकरा दी, परंतु तिवारी उस समय से ही जनता की नजरों में संदिग्ध बन गए थे। इसके अतिरिक्त वर्ष 2002 से 2007 तक उतराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कार्यकाल दौरान महिलाओं से उनके कथित रश्तिों को लेकर भी तिवाड़ी खासे चर्चा में रहे थे। वर्ष 2006 में एक म्यूजिक विडियो ने तिवाड़ी को खासा नुकसान पहुंचाया था और विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार में बड़ी भूमिका अदा की थी। गढ़वाली गायक नरेंद्र ङ्क्षसह नेगी द्वारा गाई व लिखित एक नौद्दमी नारायण वीडियो कैसेट तत्कालीन मुख्यमंत्री तिवाड़ी की कार्यशैली पर राजनीतिक व्यंग्य है। गढ़वाली बोली में नौद्दमी का अर्थ नटखट होता है। चुनावों से कुछ पहले रिलीज यह वीडियो विपक्षी दल भाजपा के लिए दमदार हथियार बनी। नेगी ने हालांकि कहा भी कि यह वीडियो कल्पना पर आधारित है, लेकिन समझने वाले तो समझ ही गए। वीडियो के दो पात्र तिवाड़ी और उनकी एक महिला मंत्री से मिलते-जुलते थे। आंध्रप्रदेश मामले को उत्तराखंड की एक महिला के आरोप ने और भी गंभीर बना दिया। राधिका नाम की एक महिला का कहना है कि मैने ही तिवाड़ी के आग्रह पर तीनों महिलाओं को वहां भिजवाया था। बकौल राधिका तिवाड़ी ने वायदा किया था कि वह महिलाओं को नौकरी लगवा देंगे, लेकिन तीनों का इस्तेमाल सैक्स के लिए किया गया। राधिका के अनुसार तिवाड़ी ने मुझे भी कडपा में खदान का लाइसैंस देने का वायदा किया था, लेकिन जब उन्होंने वायदा पूरा नहीं किया तो मैंने वीडियो क्लिप जारी करके इस मामले का पर्दाफाश कर दिया।
भारतीय राजनीति में तरह के आरोपों में घिरने वाले तिवाड़ी अकेले नेता नहीं है, कुछ और बड़े नेता भी इसी तरह के शौकों के लिए जाने जाते है, परंतु 86 साल के तिवाड़ी का ऐसा आचरण नीचता की पराकाष्ठा है। तकरीबन 60 साल से राजनीति में सक्रिय तिवाड़ी इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कानून में टापर रहे है। 1989 से पहले तीन बार अविभाजित उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके है। 1989 के बाद आजतक उत्त्रप्रदेश में कांग्रेस अपना मुख्यमंत्री नहीं बना पाई है। उत्तराखंड के वह पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री थे। केंद्र में वित्त व रक्षा मंत्रालय देखचुके है। अभी अढ़ाई साल पहले वह राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार थे। राजीव गांधी की मृत्यु के पश्चात वह प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी थे। प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नर ङ्क्षसह राव से मात खाने के बाद उनहोंने अर्जुन के साथ मिलकर तिवाड़ी कांग्रेस भी बनाई थी, जिसका बाद में कांग्रेस में विलय हो गया। तिवाड़ी की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि उन्हें राजनीति की नब्ज की जबरदस्त पहचान थी। संजय गांधी के दौर में तिवाड़ी चापलूसी की सभी सीमाएं लांघ गए। अपने राजनीतिक कौशल के कारण ही तिवाड़ी भारत के बेहद शक्तिशाली नेताओं में रहे है, परंतु अपनी काम पिपासा को काबू में न रखपाने की कमजोरी के चलते जिस तरह से बेआबरू होकर राजभवन से जाना पड़ा है, उसकी कोई दूसरी मिसाल याद नहीं आती। वैसे तो सभ्य समाज में सभी से नैतिकता और जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है, परंतु संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों से कुछ ज्यादा ही नैतिकता और जिम्मेवारी की अपेक्षा की जाती है। राज्यपाल का पद उन पदों में से एक है, जो गरिमा और उत्तरदायित्व के प्रतीक है। अगर एक गवर्नर के आचरण पर उंगली उठती है, तो कहीं न कहीं केंद्र सरकार भी कटघरे में खड़ी होती है, जिसने उन्हे राज्यपाल बनाते समय उनकी सार्वजनिक छवि का ध्यान नहीं रखा। माना कि अपनी पार्टी के नेताओं को एडजस्ट करना सभी पार्टियों की मजबूरी होती है, परंतु राजनीतिक और नैतिक दाग का फर्क तो करना ही चाहिए। दरअसल राष्ट्रपति या राज्यपाल एक सामान्य नागरिक के लिए अंतिम आश्वासन की तरह होते है, लेकिन जब इन्हीं पदों पर आरोपों के छींटे पड़ते है तो जनसाधारण की आस्था को धक्का लगता है। यह सभी पार्टियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे गवर्नर के पद को गंभीरता से लें और इसकी गरिमा की रक्षा करें।

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