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वीरेंद्र सिंह चौहान ने की सूर्य ग्रहण के प्रभाव को लेकर विशेष बातचीत

16 जनवरी 2010

प्रस्तुति: प्रवीण कुमार व चेतन सिंह
सूर्य ग्रहण को लेकर भारतीय पौराणिक चिंतन और आधुनिक विज्ञान के दृष्टिकोण में खासा अंतर है। पौराणिक पद्धति जहां ग्रहों की गति, राशियों और ग्रहण आदि के मानव जीवन पर प्रभाव को स्वीकार करती है, वहीं आधुनिक विज्ञान प्रायोगिक प्रमाणों के अभाव में इन सब धारणाओं पर सवाल उठाता है। सूर्य ग्रहण के संदर्भ में सामुदायिक रेडियो पर हुई एक परिचर्चा में जाने-माने ज्योतिषाचार्य स्वामी सुनील गावड़ी और हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के सचिव भारत भूषण के मध्य इन सवालों को लेकर जमकर चर्चा हुई। लंबी बहस के बाद इस बात पर दोनों पक्ष सहमत हुए कि अंधविश्वास और विश्वास में अंतर है और यह कहना और मानना भी गलत है कि तमाम प्राचीन भारतीय ज्ञान अवैज्ञानिक है। अपने पूर्वजों द्वारा अर्जित ज्ञान पर हमें नए सिरे से मंथन कर उसे नवयुग के अनुरूप प्रस्तुत करना होगा। प्रस्तुत हैं केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ सूर्यग्रहण के प्रभावों को लेकर हुए इस विशेष कार्यक्रम में हुई बातचीत के संपादित अंश-
सूर्य ग्रहण क्या है?
आधुनिक विज्ञान के अनुसार प्राचीन समय में उपकरणों के अभाव में भिन्न-भिन्न चिंतकों द्वारा ग्रहण के विभिन्न कारण दिए गए। जैसे दैवीय सिद्धांत, फिर पृथ्वी को केन्द्र माना गया। फिर सूर्य केन्द्रित सिद्धांत आया। परन्तु नवीनतम सिद्धांत के अनुसार आठ ग्रह सुर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। चन्द्रमा पृथ्वी के और पृथ्वी सूर्य के चारों और चक्कर लगाती है। इस प्रक्रिया के दौरान जब चन्द्रमा सूर्य के आगे आकर उसकी रोशनी को पृथ्वी तक पहुंचने मे बाधक बनता है तो उसे सूर्य ग्रहण कहते है। परन्तु पौराणिक दृष्टि से देखें तो शास्त्रों में उल्लेख है कि जब राहू सूर्य को ग्रास करता है और केतू चन्द्रमा को ग्रास करता है तब ग्रहण होता है।
सूर्यग्रहण के दौरान क्या करें और क्या न करें?
पौराणिक पद्धति के अनुसार सूर्य ग्रहण के समय उर्जा का स्तर असंतुलित होता है और नाकारात्मक शक्ति का प्रभाव होता है। इसलिए अधिक से अधिक दान-पुण्य व भक्ति करनी चाहिए। परन्तु आधुनिक विज्ञान में इसका कारण ढूढंने का प्रयत्न किया गया है व इसे अंधविश्वास बताया गया है। कुछ लोगों द्वारा इस अंधविश्चास का लाभ भी उठाया जाता है। इनका कहना है कि जब रात को भी लोग कार्य कर सकते है,जो कि बहुत लंबी होती है तो ग्रहण के दौरान कुछ समय के अंधेरे से कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य को सीधे नहीं देखना चाहिए, उससे रेटिना को हानि पंहुचना तय है। पौराणिक चिंतन के अनुसार ग्रहण के दौरान खाना नहीं पकाना चाहिए। खाना खाने को निषेध नहीं माना गया है।
सूर्य ग्रहण के प्रति किस प्रकार की भ्रांतियां प्रचलित हैं?
विज्ञानी कहते हैं कि इन भ्रांतियों के पीछे पढ़े लिखे व्यक्तियों का सहयोग है। वे कर्मकांड के लिए प्रेरित करते हैं। विभिन्न स्थानों पर स्नान के लिए जाते हैं। आधुनिक विज्ञान इन्हें भ्रांतियां ही कहता है। परंतु पौराणिक चिंतन के अनुसार यह हमारे मनीषियों द्वारा अनुभव के आधार पर सिद्ध की गई बाते हैं। विज्ञान के लोगों को इनकी तह में जाने में अभी समय लगेगा।

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