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श्री बाबा बालकनाथ जी के पवित्र झंडे की शोभा यात्रा 21 फरवरी को

19 फरवरी 2010
सिरसा(सिटीकिंग) सिद्ध श्री बाबा बालकनाथ जी के पवित्र झण्डे की 17वीं शोभायात्रा भगत विजय कपूर शिष्य भगत संत तरसेम लाल जी लुधियाना वालों की रहनुमाई में आगामी 21 फरवरी को प्रात: 8 बजे प्रमुख समाजसेवी जयचन्द गुप्ता के निवास स्थान गली बोर्डिंग वाली, रोड़ी बाजार से प्रारम्भ होगी। शोभा यात्रा सुभाष चौक, सदर बाजार, गली तेलियांवाली, सरकूलर रोड, इन्द्रपुरी मोहल्ला, सूरतगढिय़ा बाजार, काठ मण्डी, बेगू रोड से होती हुई दोपहर 2 बजे कंगनपुर रोड स्थित मन्दिर सिद्ध श्री बाबा बालकनाथ एवं दुर्गा माता में सम्पन्न होगी। इस अवसर पर बठिण्डा व लुधियाना से विशेष रूप से आमंत्रित भजन मण्डली द्वारा बाबा का सुन्दर शब्दों में गुणगान किया जाएगा। कार्यक्रम के समापन के पश्चात लंगर भण्डारे का आयोजन किया जाएगा।
शोभा यात्रा पर बाबा बालकनाथ की जीवनी : गुजरात प्रान्त की तहसील जूगागढ़ के गांव काठियाबाड़ निवासी ब्राह्मण श्री वैष्णों के घर लक्ष्मी देवी की कोख से जन्मे बालक ने अपने दृढ़ निश्चय व लगन से भगवान शिव के दर्शन किए, उनकी अमर कथा सुनी और बाबा बालकनाथ के नाम से अमर हो गए। भगवान शिव के दर्शन हेतु जा रहे साधु महात्मा की टोली में एक ब्रह्मचारी बाबा भी सम्मिलित हो गए। साधु महात्मा सही रास्ता न होने के कारण वापिस लौट गए परंतु ब्रह्मचारी जी नेे विश्वास के साथ आगे बढऩा जारी रखा। एक दिन पहाड़ी पर धर्मो नामक एक औरत जो भेड़-बकरियां चरा रही थी, ब्रह्मचारी जी को नजर आई जिसे उन्होंने अपनी इच्छा बताई। माता धर्मो ने उपाय बताया कि कल सोमवती अमावस्या को पार्वती माता नीचे मानसरोवर झील में स्नान के लिए आएंगी और अगर वे चाहें तो आपको शिवजी के दर्शन करवा सकती हैं और उन्हें सुबह तक अपनी कुटिया में ठहरने का आमंत्रण दिया जहां वे बारह घड़ी रहे। प्रात: काल जब माता पार्वती स्नान के लिए आई तो ब्रह्मचारी जी ने उनके चरण पकड़ लिए तथा माता से वचन लिया। ब्रह्मचारी के निश्चय को जानकर माता पार्वती अपनी शक्ति से उन्हें बालक रूप में बना आंखें बंद करवाकर अपनी अंगुली पकड़वाकर कैलाश पर्वत पर ले आई और भगवान शिव के दर्शन करवा दिए। शिव जी महाराज ने उन्हें अपनी गोद में बिठा लिया और कहा कि मैं तुम्हारी भक्ति, दृढ़ निश्चय और लगन से प्रसन्न हूं और वचन दिया कि तुम सदा अमर रहोगे तथा कलयुग में तुम्हारी पूजा होगी और जो भी जीव तुम्हारी शरण में आएगा उसके सब दुख दूर होंगे। बाबा जी ने माई धर्मो जिसने उन्हें शिव के मिलने का रास्ता बताया था, उन्हें भी भगवान शिव के दर्शन कराये। भगवान शिव ने बाल ब्रह्मचारी से कहा कि जिसे माता धर्मो के पास तुमने 12 घड़ी विश्राम किया उसके बदले में इसकी अगले जन्म में बारह वर्ष सेवा करोगे जिसका भेद बारह वर्ष बाद ही खुलेगा। अगले जन्म में काठियाबाड़ में उपरोक्त अनुसार उनका जन्म हुआ। शिक्षा के बाद जब होने पर माता-पिता ने उनकी शादी करनी चाही तो उन्होंनें मना करते हुए बताया कि मैं बाल ब्रह़ाचारी था और इस जन्म में भी ब्रह़ाचारी ही रहूंगा और भक्ति करूंगा और एक दिन अवसर पाकर वे घर से निकल गए। रास्ते में उनकी भेंट श्री गुरू दतात्रेय से हुई और ब्रह्मचारी ने उनको गुरू धारण किया तथा उनके साथ गिरनार पर्वत पर स्थित आश्रम में चले गए। गुरू की आज्ञा अनुसार ब्रह़ाचारी तप व सेवा के कार्य करते रहे। बाबा जी हरिद्वार के कुम्भ मेले में गुरू दतात्रेय के साथ गए और धूमते हुए सूर्यग्रहण मेले पर कुरूक्षेत्र पहुंचे जहां जारी मंडली बिखर गई और बाबा जी शाहतलाई की ओर चल पड़े जहां माई रत्नों के घर पहुंचकर भिक्षा मांगने लगे। माता रत्नों के कोई पुत्र नहीं था और उनके बाबा जी को अपनी गाय चराने का अनुरोध किया जिसके बदले में रोटी लस्सी देती रही। बारह वर्ष तक गाय चराने का कर्जा पूरा हो गया तो एक दिन जब बाबा जी प्रभुभक्ति में मग्न थे और गायों ने जमींदारों के हरे भरे खेत चर लिए। नाराज जमींदारों ने रत्नों को उलाहना देते हुए बहुत बुरा भला कहा और पुलिस में शिकायत कर दी। माता रत्नों पुलिस तथा जमीदारों को लेकर बाबा जी ने बोरड़ के पेड़ का छिलका उतारकर कहा माई तुम्हारी बारह वर्ष की रोटियां यहां हैं और जमीन में चिमटा मार कर लस्सी का तालाब बना दिया कर्ज पूरा कर दिया। हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर तहसील में शाहतलाई से तीन किलोमीटर ऊपर धौलगिरि की पहाडिय़ों में दियोट सिद्ध नामक स्थान पर बाबा जी का बहुत बड़ा मंदिर व तीर्थ स्थान है और दुनियां से श्रद्वालु यहां आते हैं। यह रास्ता सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है और हर रविवार रोट का प्रसाद चढ़ाया जाता है। गुफा के ऊपर चरण पादुका के चरण चिन्ह आज विद्यमान हैं। राजा भर्तहरि का मंदिर, समाधियों व माता रत्नों का मंदिर भी वहां बना हुआ है चैत्र मास में विशाल मेला लगता है।

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