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वेश्याओं के पुनर्वास के लिए चलाया गया डेरा सच्चा सौदा का अभियान कई मायनों में अनूठी पहल:डॉ.इंसा

03 फरवरी 2010
प्रस्तुति: प्रवीण व आयुष्मान
वेश्याओं के पुनर्वास के लिए चलाया गया डेरा सच्चा सौदा का अभियान कई मायनों में अनूठी पहल है। करीब एक साल पहले डेरा मुखी गुरमीत राम रहीम सिंह ने पहली बार इस बारे में काम करने की आवश्यकता जताई थी। चूंकि काम बहुत कठिन और असंभव दिखने वाला था इसलिए डेरा के जिन सेवादारों के समक्ष यह सुझाव दिया गया उनमें से अधिकांश ने चुप्पी साध ली। सबको लगता यह था कि इन युवतियों को अपनाने के लिए कोई आगे नहीं आएगा। करीब दो माह पहले अचानक डेरा प्रमुख ने जब सार्वजनिक रूप से नौजवानों को आगे आने का आवाहन किया तो भगत योद्धाओं की कतार ही लग गई। यह कहना है डेरा सच्चा सौदा के प्रवक्ता आदित्य इंसा का। डा. आदित्य का मानना है कि डेरे का यह अभियान भी अन्य अभियानों की तर्ज पर कामयाब अवश्य होगा। वे नहीं मानते कि यह प्रचार पाने का कोई हथकंडा है। सामुदायिक रेडियो के कार्यक्रम हैलो सिरसा में डा. इंसा ने इस अभियान के विभिन्न पक्षों पर केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ खुलकर बात की। बकौल डा. इंसा यह अभियान वेश्यावृत्ति को जड़ से उखाडऩे के लिए प्रारंभ किया गया है।
प्रस्तुत है इस बातचीत के संपादित अंश:यह अभियान देह व्यापार को समाप्त करने की मुहिम है या देह व्यापार में लिप्त लोगों के पुनर्वास का कार्यक्रम? इस समस्या को जड़ से उखाडऩा ही हमारा उद्ेदश्य है। प्राचीन समय से ही बुराई और अच्छाई में जद्योजहद चलती आई है। समय समय पर हमारे समाज में समाज सुधारकों द्वारा सती प्रथा, दहेज प्रथा जैसी बुराइयों पर नकेल डाली गई। हमारे अभियान को उसी क्रम में एक कदम के रूप में देखा जा सकता है। आज समाज में देह व्यापार दो तरह का है। कुछ महिलाएं तो गरीबी के कारण इस धंधे में हैं और कुछ स्वेच्छा से इस कार्य में हैं। सर्वप्रथम हमारा ध्यान गरीबी के कारण फंसी युवतियों को इस दलदल से निकालना है। उसके उपरांत स्वेच्छा से देह व्यापार में लिप्त युवतियो को भी समझाया जाएगा कि वे किस तरह अपने इस अनमोल शरीर व समाज को लाइलाज बिमारियों की ओर धकेल रही हैं। उन्हें भी समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।
इस अभियान को सफल करने के लिए आप किस तरह से प्रयासरत हैं?
देह व्यापार छोड़कर समाज की मुख्यधारा में शामिल होने वाली युवतियों को गुरू जी ने अपनी बेटी के रूप में अपनाया है। डेरा सच्चा सौदा के नौजवान श्रद्धालु इन्हें अपनाने के लिए स्वेच्छा से आगे आ रहे है। इन्हें भक्तयोद्धा के खिताब से नवाजा गया है। अगर भविष्य में समाज द्वारा इन्हें प्रताडि़त किया जाता है तो डेरा सच्चा सौदा द्वारा इन्हें नौकरी व मकान आदि मूलभूत सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। इन सुविधाओं को मुहैया करवाने के लिए गुरू जी ने अपने साढ़े तीन करोड़ श्रद्धालुओं का आह्वान किया है कि वे एक रुपया रोजाना जमा करें। इस सहयोग राशि से ही अब तक सात विवाह संपन्न हुए हैं। उन भक्तयोद्धाओं और शुभदेवियों की पहचान को भी गुप्त रखा गया है।
सब पंथ संप्रदाय सकारात्मक बातें करते हैं। फिर परस्पर टकराव की स्थिति क्यों पैदा होती है?
दरअसल वैज्ञानिक तरीका यह कहता है कि अगर हम जिज्ञासा को शांत करना चाहते है तो हमें नई खेाज के लिए अपने विचारों को खुला छोडऩा होगा। दुनिया में हर सौदा यकीन पर ही टिका हुआ है तो हम रूहानियत में यकीन क्यों नहीं करते। बी.ए. की डिग्री हासिल करने के लिए हम जिंदगी के अठारह या बीस वर्ष लगाते हंै। परन्तु रूहानियत में कुछ घंटे भी न लगा कर उस पर सवाल खड़ा करना प्रारंभ कर देते हैं। डेरा सच्चा सौदा कोई पंथ या संप्रदाय न होकर एक संस्था है जहां सब पंथ संप्रदायों का मान-सम्मान होता है। जहां तक टकराव की बात है कोई भी संत या पंथ टकराव नहीं सिखाता। टकराव निहित स्वार्थी लोगों के षड्यंत्रों या कुछ लोगों की नासमझी के कारण होता है।

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