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सिरसा में वेबवार्ता कार्यक्रम में हरिवंद्र मलिक से विशेष बातचीत

21 फरवरी 2010
प्रस्तुति: मनमोहित ग्रोवर, वंश जैन
हरियाणवी सिनेमा और लोकसंगीत दोनों की दुर्दशा की वजह पर्याप्त सरकारी संरक्षण का घोर अभाव है। मृतप्राय हरियाणवी सिनेमा में प्राण फूंकने हैं तो सरकार को महाराष्ट्र की तर्ज पर फिल्म पॉलिसी लाकर हरियाणवी बोली में काम करने के इच्छुक लोगों को प्रोत्साहन का रास्ता तैयार करना होगा। मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस मामले की गंभीरता को बखूबी समझते हैं और उनसे कलाकारों व हरियाणवी बोली से प्रेम करने वालों को खासी अपेक्षाएं हैं। पिछले करीब दो दशक से बॉलीवुड में कार्यरत और समय समय पर हरियाणवी संस्कृति के पोषण के लिए अलग अलग ढंग से योगदान करने वाले हरविंद्र मलिक ने यह टिप्पणियां चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के सामुदायिक रेडियो स्टेशन पर की। मुंबई से वेबवार्ता कार्यक्रम में केंद्र निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ रूबरू हुए मलिक ने कहा कि हरियाणा सिनेमा के पुर्नजन्म के लिए सरकार को निर्माताओं को आश्वस्त करना होगा कि उनके उत्पाद को मनोरंजन कर मु२त रखा जाएगा ताकि वह बड़े बजट की मुंबइयां फिल्मों को किसी हद तक टक्कर दे पाएं। राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली हरियाणवी फिल्म लाडो के सह-निर्माता हरविंद्र मलिक का कहना है कि महाराष्ट्र में सिनेमाघरों में एक न्यूनतम समयावधि के लिए मराठी भाषा की फिल्में चलाना अनिवार्य हो सकता है तो हरियाणा में कुछ ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जा सकती। मलिक कहते हैं कि इसी प्रकार का समर्थन व संरक्षण लोकसंगीत को दिए जाने की आवश्यकता है। जाने-माने निर्माता-निर्देशक महेश भट़ट के सान्निध्य में सहायक निर्देशक के रूप में अपने बॉलिवुड कॅरियर का आगाज करने वाले मलिक हरियाणवी संस्कृति व संगीत के संरक्षण-पोषण के मामले में राज्य के विश्वविद्यालयों की नाममात्र की भूमिका से भी खिन्न हैं। उनका कहना है कि विश्वविद्यालयों से राज्य की सांस्कृ़तिक धरोहर की रखवाली और विस्तार की जो अपेक्षा थी, वे उस पर खरे नहीं उतर रहे हैं। पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष व कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता वीरेंद्र सिंह चौहान के एक सवाल के जवाब में मलिक ने कहा कि कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय के युवा कल्याण व सांस्कृतिक विभाग में हुए कुछ रचनात्मक कार्यों को छोड़ दें तो कहीं कुछ ठोस होता दिखाई नहीं देता। विश्वविद्यालयों में परस्पर सहयोग व तालमेल के बजाय कुछ मामलों में निम्र स्तर की प्रतिस्पर्धा ने ले ली है। मलिक कहते हैं कि ऐसे कला व संस्कृति की साधना संभव नहीं है। हरियाणवी लोक संगीत को हरियाणवी पॉप के रूप में पेश करने वाले हरविंद्र मलिक कहते हैं कि हरियाणवी के सूर्य कवि पंडित लख्मी चंद सरीखे महानायकों की हरियाणा बनने के बाद भी लगातार अनदेखी हुई है। उन्होंने सवाल उठाया कि आज तक पंडित लख्मी चंद की रागनियों को स्कूल या कॉलेज के पाठ्यक्रम में शामिल क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि यह ऐसे महानायकों के प्रति हमारी उदासीनता का ही प्रमाण है कि महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में हाल ही में बनकर तैयार हुए ऑडिटोरियम का नाम पंडित ल१मीचंद के नाम पर न रख कर टैगोर सभागार रखा गया है। बकौल मलिक गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर से किसी का कोई विरोध नहीं हो सकता मगर राज्य में राज्य की धरोहर के प्रतीकों को उनका देय मान न मिलना पीड़ादायक है। हरियाणवी लोकगायकी की दशा पर तल्ख टिप्पणी करते हुए मलिक ने कहा कि संरक्षण के अभाव में हरियाणवी लोकगायकी दम तोड़ रही है। उन्होंने कहा कि लोकगायकी के नाम पर बहुत से लोग बेहूदगी व फूहड़ता परोस रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों के कारण अभिभावक अपने बच्चों को हरियाणवी गीत संगीत सुनने से बचने की सलाह देते हैं। उन्होंने कहां आज हरियाणवी में जो लोग मंचों पर प्रस्तुतियां दे रहे हैं उनमें से अधिकांश की रूचि रियाज के बजाय रिकवरी में हैं और वे श्रोता की क्षुधा शांत नहीं कर पा रहे। राज्य में पंजाब की तुलना में लोकगायकी के पिछड़ेपन के कारणों पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हरियाणा में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सकारात्मक योगदान देने वाले आर्य समाज ने लोकसंगीत व नृत्य आदि के प्रति आम लोगों में नकारात्मक भावना पैदा की। एक सवाल के जवाब में हरिवंद्र मलिक ने कहा कि उनकी दस हरियाणवी एलबम लगभग तैयार हैं और अगले एक माह के भीतर इनके क्रमवार लोर्कापण का सिलसिला प्रारंभ हो जाएगा।

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