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सत्संग को मनोरंजन मानना अपराध है : दिव्यानन्द

10 फरवरी 2010
सिरसा(सिटीकिंग) सत्संग मनोरंजन नहीं अपितु बुद्धि को विवेकी बनाने के लिए होता है। विवेक से शुभाशुभ कर्मों-धर्मों का बोध होता है तब अशुभ कर्मों के लिए पश्चाताप होते हुए चित्त शुद्धि एवं कर्मशुद्धि होती है, यही धर्म की सार्थकता है। भगवान शिव चैरिटेबल संस्थान रजि. सिरसा द्वारा स्थानीय मुल्तानी कालोनी में आयोजित शिव पुराण कथा के अंतर्गत गत दिवस शिव तत्त्व की व्याख्या करते हुए तपोवन हरिद्वार से विशेष रूप से पधारे गीता भागवत व्यास डा० स्वामी दिव्यानन्द जी महाराज (भिक्षु) ने कहा कि सत्संग का प्रयोग बुद्धि को विवेकी बनाने के लिए होना चाहिए, शिव कथा का यही प्रायोजन है। शिव वैभव प्रधान देव नहीं अपितु विवेक प्रधान महादेव हैं। शिव पुराण में सदाचारी, विवेकी और जीवन को निर्विकार बनाने के लिए शिव अराधना का वर्णन है। उन्होंने कहा कि शिव का विवेक ही है जो शमशान में भी अच्छी प्रकार से मकान की भाँति जीवन जीने की कला देता है। हम लोग तो मकान में भी चिंता, ईष्र्या, दोष, क्रोध में रह-रहक जला हुआ जीवन व्यतीत करते हैं क्योंकि हम लोग वैभव को महत्व देते हैं विवेक को नहीं। धार्मिक क्रियाओं को मनोरंजन मानना अपराध है। उल्लेखनीय है कि महाशिवरात्रि के पावन पर्व के अवसर पर 5 दिवसीय शिव पुराण कथा का आयोजन सायं 3.15 से 6.15 बजे तक किया जा रहा है। इस अवसर पर सिरसा शहर के अनेकों गणमान्य व्यक्ति एल.डी. मेहता, मा. जयदयाल, डा० देवराज, ओमप्रकाश मेहता, मा. रोशन लाल गोयल, जी.सी. गाबा पूर्व एक्सन, बालचन्द गोयल, बी.आर. कक्कड़, रामप्रसाद टुटेजा, धर्मपाल, ज्ञानचन्द सेठी, प्रो. गुरदयाल, राजेश मेहता, ओमप्रकाश कालड़ा, कश्मीरी लाल नरूला, संतलाल मैहता, पन्नालाल एवं राधाकिशन कुक्कड़ आदि उपस्थित थे।

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