गैंडे का सींग ही-उसकी जान का दुश्मन
02 फरवरी 2010
प्रस्तुति: मनमोहित ग्रोवर(प्रैसवार्ता)
मनुष्य की अज्ञानता और अंधविश्वास ने उसमें कुछ ऐसे शौक पैदा कर दिये हैं, जोकि बरबादी का रास्ता दिखाते हैं। ऐसे ही शौक में एक शौक है-प्रकृति की सुन्दर पैदावार जंगली जानवरों का शिकार। कई जंगली जानवरों के अंग ही मनुष्य के आकर्षण है, जो उनकी मृत्यु का कारण बनते हैं। ऐसे ही एक जंगली जीव है-गैंडा, जिसके नाक पर लगा सख्त सींग ही उसकी मृत्यु है। सदियों से अज्ञानता वश मनुष्य गैंडे का शिकार कर रहा है, क्योंकि उसका अंधविश्वास है कि गैंडे के इस शक्तिशाली सींग में कोई जादुई ताकत है। वास्तव में यह सींग नहीं, बल्कि निरोल नाक के ऊपर पैदा होने वाले वाल होते हैं। हाथी के बाद पृथ्वी के स्थल भाग पर रहने वाले भारी जंगली जीवों में गैंडा दूसरे नंबर पर आता है। गैंडे के नाक पर एक या दो सींग होते हैं। गैंडा धरती पर पाये जाने वाले घोड़े, गधे, जैबरा जैसे जीवों की तरह बनघारी जीव है। गैंडे के पांव की तीन उंगलियां होती हैं और वर्तमान में विश्वभर में गैंडे की पांच जातियां हैं, जिनमें दो अफ्रीकी देशों में तथा तीन एशिया के देशों में। इनमें से अफ्रीकी गैंडों तथा ऐशिया के सुमाटरा में पाये जाने वाले गैंडे के नाक पर दो सींग होते हैं-जबकि ऐशिया के देश भारत और जावा में पाये जाने वाले गैंडे के नाक पर एक सींग होता है, जिसकी ऊंचाई लगभग 180 सै.मी. तथा वजन 30 क्विंटल तक होता है। अफ्रीकी सफेद गैंडे का चौड़ा वर्ग आकार का मुंंह होता है-जबकि काले गैंडा का मुंह तीखा होता है। सारे ही गैंडे शाकाहारी होते हैं और एक दूसरे जीवों पर हमला नहीं करते, परन्तु खतरे के समय 50 कि.मी. प्रति घंटे तक दौड़ सकते हैं। सुमाटरा का दो सींग वाला गैंडा सबसे छोटा होता है, जिसका कद लगभग 135 सै.मी. तथा वजन दस क्विंटल तक होता है। भारतीय गैंडा पूर्वी आसाम और नेपाल में पाये जाते हैं। यह एकांत में रहना पसंद करते हैं और इनकी चमड़ी इतनी सख्त होती है, कि लगता है-जैसे पीठ पर काठी डाली गई है। शरीर के बाल कम होते हैं, परन्तु नाक के बाल लम्बे होते हैं, जो लम्बे सींग दिखाई देते हैं। अन्य जंगल जानवरों की तरह गैंडा के सींग खोपड़ी का भाग नहीं होते, केवल चमड़ी पर ही होते हैं, जो लड़ाई के समय गिरने उपरांत पुन: आ जाते हैं। अफ्रीकी गैंडे के सींग तो एक मीटर तक लम्बाई पर पहुंच जाते हैं और ज्यादातर गैंडे पचास वर्ष तक जीवित रहते हैं। मादा गैंडा एक बार डेढ वर्ष के गर्भकाल उपरांत एक बच्चे को जन्म देती है, जो कई वर्ष तक मां के साथ रहता है। गैंडे चीकड़ में लथ-पथ रहना ज्यादा पसंद करते हैं। इसे गैंडा का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि उसके सींग और सुंदर चमड़ी ही उसके शिकार का कारण बनती है और निरंतर संख्या कम हो रही है। वैसे तो गैंडा भारत के काजीरंगा राष्ट्रीय पार्क में सुरक्षित है, परन्तु जंगली जीवों के शत्रु चोरी-छिपे इनका शिकार करते रहते हैं।