कोर्ट मैरिज को मिलेगी सामाजिक मान्यता
02 फरवरी 2010
नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) भारतीय समाज से दहेज रूपी दानव को बाहर निकालने के लिए केन्द्र सरकार कोर्ट मैरिज को सामाजिक मान्यता देने पर एक योजना को अंतिम रूप देने जा रही है। शादी का सरकारी पंजीकरण पहले ही अनिवार्य किया जा चुका है। केन्द्र सरकार भारतीय समाज के पूरी तरह पश्चिमी संस्कृति में लीन होने से चिंतित है, क्योंकि सरकार मानती है कि दिनों-दिन बढ़ रही महंगाई, दिखावे बाजी तथा परम्पराओं का निर्वाह लोगों को शादी-विवाह के कर्ज में डूबो रहा है और यही कर्ज अक्सर लोगों को मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या का रास्ता दिखा देता है। वर्तमान में बदलते युग में भारतीय समाज में परम्परागत शादी करना ''आऊट फैशन'' हो गया है और लोग देखा-देखी महंगी से महंगी शादी करने लगे हैं-भले ही उन्हें इस शादी के लिए सम्पती बेचनी या कर्ज लेना पड़े। अमीर वर्ग में तो इस तरह की शादी का कोई असर नहीं देखा जाता, जबकि मध्यम तथा निम्र वर्ग में ऐसी शादियों के बाद मां-बाप ही कर्ज के बोझ तले नहीं दबता, बल्कि इसका खामियाजा नव विवाहित दम्पत्ति को भी कई बार भुगतना पड़ता है। शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण स्तर पर लोग शादियों के लिए ''मैरिज पैलेस'' को प्राथमिकता देने लगे हैं। उपायुक्त कार्यालयों में वही शादियां कम दर्ज करवाई जाती है-जबकि कोर्ट मैरिज विदेश जाने वाले ही करवाते हैं। केन्द्र सरकार की इस नई योजना से भारतीय समाज में ''कोर्ट मैरिज'' को अच्छी नजर से न देखने वालों की सोच में बदलाव लाकर उन्हें जागरूक करने का प्रयास होगा, शादी के लिए खर्च, बाराती संख्या इत्यादि की एक सीमा निर्धारित की जायेगी, जिसके उल्लंघन पर जुर्माना, कैद अथवा दोनों ही का प्रावधान होगा। सरकार की इस योजना से, जहां दहेज रूपी दानव से मुक्ति मिलेगी, वही शादी के लिए सम्पति के बेचने या कर्ज लेने से भी बचा जा सकेगा।
नई दिल्ली(प्रैसवार्ता) भारतीय समाज से दहेज रूपी दानव को बाहर निकालने के लिए केन्द्र सरकार कोर्ट मैरिज को सामाजिक मान्यता देने पर एक योजना को अंतिम रूप देने जा रही है। शादी का सरकारी पंजीकरण पहले ही अनिवार्य किया जा चुका है। केन्द्र सरकार भारतीय समाज के पूरी तरह पश्चिमी संस्कृति में लीन होने से चिंतित है, क्योंकि सरकार मानती है कि दिनों-दिन बढ़ रही महंगाई, दिखावे बाजी तथा परम्पराओं का निर्वाह लोगों को शादी-विवाह के कर्ज में डूबो रहा है और यही कर्ज अक्सर लोगों को मानसिक तनाव के चलते आत्महत्या का रास्ता दिखा देता है। वर्तमान में बदलते युग में भारतीय समाज में परम्परागत शादी करना ''आऊट फैशन'' हो गया है और लोग देखा-देखी महंगी से महंगी शादी करने लगे हैं-भले ही उन्हें इस शादी के लिए सम्पती बेचनी या कर्ज लेना पड़े। अमीर वर्ग में तो इस तरह की शादी का कोई असर नहीं देखा जाता, जबकि मध्यम तथा निम्र वर्ग में ऐसी शादियों के बाद मां-बाप ही कर्ज के बोझ तले नहीं दबता, बल्कि इसका खामियाजा नव विवाहित दम्पत्ति को भी कई बार भुगतना पड़ता है। शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण स्तर पर लोग शादियों के लिए ''मैरिज पैलेस'' को प्राथमिकता देने लगे हैं। उपायुक्त कार्यालयों में वही शादियां कम दर्ज करवाई जाती है-जबकि कोर्ट मैरिज विदेश जाने वाले ही करवाते हैं। केन्द्र सरकार की इस नई योजना से भारतीय समाज में ''कोर्ट मैरिज'' को अच्छी नजर से न देखने वालों की सोच में बदलाव लाकर उन्हें जागरूक करने का प्रयास होगा, शादी के लिए खर्च, बाराती संख्या इत्यादि की एक सीमा निर्धारित की जायेगी, जिसके उल्लंघन पर जुर्माना, कैद अथवा दोनों ही का प्रावधान होगा। सरकार की इस योजना से, जहां दहेज रूपी दानव से मुक्ति मिलेगी, वही शादी के लिए सम्पति के बेचने या कर्ज लेने से भी बचा जा सकेगा।