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जयपुर विकास प्राधिकरण का भू मायाजाल

03 फरवरी 2010
प्रस्तुति: डा. भरत मिश्र प्राची(राजस्थान)
राजस्थान प्रदेश की राजधानी जयपुर में विगत कई वर्षो से लुभावने संसाधनों का दिवास्वपन्न दिखाकर शहर से कोसों दूर विरान जगह पर आवासीय कॉलोनी के नाम भू आंवटन का कार्य तेजी से जयपुर विकास प्राधिकरण के तहत जारी है। जिसे पाने के लिये आगे - पीछे प्रदेश भर के लोग धूमते ही रहते है। जिसे भूखंड मिल जाता है, उस समय वह अपने आप को सौभाग्यशाली मानता है। उसके चेहरे पर असीम प्रसन्नता छा जाती है। उस भूखंड पर वह अपने सपनों का महल खड़ा करने के जुगाड़ में जुट जाता है। अपनी योजना के मुताबिक जब वह आंवटित भूखंड के पास जाता है तो वहां के अविकसित हालात को देखकर निराश हो जाता है। उसके द्वारा अपना एक आशियाना खड़ा करने की कल्पित योजना सपनों में ही सिमट कर रह जाती है। जब कि आंवटन पत्र में भूखंड पंजीकरण कराने के एक साल के भीतर ही वहां निर्माण कराने के लिए निर्देश जे. डी. ए. द्वारा दर्शाये गये होते है। परन्तु भूखंड आंवटन के कई वर्षो तक उक्त स्थल का विकास संबंधित विभाग द्वारा हो पाना संभव ही दिखाई नहीं देता। जयपुर विकास प्राधिकरण भूखंड आंवटित कर आगे की योजनाओं से अपना पल्ला झाड़ लेता है । उक्त स्थल पर घोषित योजनाओं के मुताबिक कार्य समयानुकूल हो भी रहा है या नहीं, इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता । इस मामले में सरकार एवं प्रशासन दोनों चुप्पी साधे दिखाई दे रहे है।जब कि आंवटन से पूर्व विज्ञापनों के माध्यम से जे. डी. ए. द्वारा उक्त स्थल पर विकास की तमाम परियोजनाएं दर्शायी गई होती है तथा संबंधित विभाग द्वारा वितरित विवरण पुस्तिका में भी लुभावने चित्र, परिदॄश्य दर्शाये गये होते है। जिन्हें देखकर उपभोक्ता एक बार इस तरह के भू मायाजाल में उलझ ही जाता है। अब प्रश्न यह उभरता है कि जब आंवटित भूखंड क्षेत्र का विकास समुचित ढ़ंग से समय पर विभाग द्वारा नहीं किया गया हो, तथा भवन निर्माण संबंधित आवश्यक सुविधाएं पानी, बिजली आदि की समुचित व्यवस्था नहीं की गयी हो तो उक्त स्थल पर निर्माण कार्य किस प्रकार संभव हो पायेगा , विचारणीय पहलू है। इस परिवेश के तहत जयपुर विकास प्राधिकरण द्वारा जारी सीकर, अजमेर , दिल्ली रोड के आस -पास जयपुर विकसित क्षेत्र से काफी दूर विरान जगहों पर आंवटित भूखंडों की वस्तुस्थिति पर एक नजर डालें तो यर्थात का पता चल पायेगा। जहां सीकर रोड पर आंवटित भूखंड एकान्त लोक ,स्वपन्न लोक , आनन्द लोक आदि जो बयां कर रहे है , उससे आंवटित भूखंडधारियो के व्यथित मनोदशा का सही आंकलन किया जाना संभव हो सकेगा। जहां एकान्त लोक अभी भी एकान्त का आभास करा रहा है तो वहीं स्वपन्न लोक भूखंडधारियों को आशियाना बनाने का सपना दिखाते हुए स्वपन्न लोक में विचरण करा रहा है , तो विरान में आंवटित अविकसित आनन्द लोक किस प्रकार की आनन्द की अनुभूति का आभास भूखंडधारियों को करा पा रहा होगा ,सहज अनुमान लगाया जा सकता है। इसी तरह के हालात प्राय: अभी तक के सभी अविकसित भूखंडों के हैं। जहां पानी टंकी के नाम केवल ढांचा खड़ा है। बिजली के पोल खड़े तो है, पर बिजली गोल है। आंवटित भूखंड के आसपास कहीं कहीं बनी सड़कें नजर तो आ रही है जहां सड़कों के तले दबे हुए उबड़ - खाबड़ भूखंड समतल होने की प्रतीक्षा में बेसब्री से अपने मालिक का इंतजार कर रहे है जो आकर इनका सदुपयोग कर सके । इस तरह के हालात कब तक निर्माण योग्य बन पायेगें, कह पाना अभी मुश्किल है जहां बार- बार प्रदेश की बदलती सरकारों के प्रतिकूल प्रभाव को भी ये झेलते भूखंड विकसित होने की प्रतीक्षा अभी भी करते नजर आ रहे है। जिन्हें विकसित होने में अभी कई वर्ष लगने के आसार झलक रहे है। एक ओर प्रदेश में आवासीय कॉलानी बसाने एवं जरूरतमंद लोगों को अपना आशियाना अपने मनमुताबिक खड़ा करने के उदेश्य से भूखंड आवंटित करने हेतु सरकार के अधिनस्थ कार्यरत् सरकारी संस्थानों का परिदॄश्य है तो दूसरी ओर इस दिशा में कार्यरत निजी संस्थानों का विकसित आकर्षक स्वरुप सामने है। जहां सुसज्जित पार्क, सड़क, स्कूल , मॉल, अस्पताल, पानी ,बिजली आदि पहले से ही उपलब्ध है। इस दिशा में जयपुर में निर्माणाधीन सुशान्त सीटी, रॉयल सीटी, मंगलम सीटी आदि के उभरते परिदॄश्य को देखा जा सकता है। जहां भूखंड पर निर्माण हेतु हर तरह के संसाधन एवं सुविधाएं उपलब्ध है। एक तरफ उपभोक्ता सुरक्षा के दृष्टिकोण से सरकारी योजना की ओर भागता तो अवश्य है परन्तु वहां की अव्यवस्था एवं लापरवाही देखकर उदासीन हो जाता है। जहां उसकी भवन निर्माण की सारी योजनाएं ज्यों की त्यों धरी रह जाती है। इस तरह का उभरता परिवेश प्रदेश की आम जनता के साथ अतंत: धोखा की श्रेणी में ही आता है। सरकार का दायित्व है कि अपने अधिनस्थ संस्थाओं द्वारा जारी हर तरह की प्रक्रिया पर नजर रखें एवं उसके द्वारा जारी धोषाणों पर समय से अमल हो, इस दिशा में आवश्यक कार्यवाही करे , जिससे धोखा जैसी प्रवृष्टि को प्रश्रय न मिलें तथा आम जन का सरकारी योजनाओं पर विश्वास कायम रहे। इस दिशा में जे. डी. ए. को भवन निर्माण हेतु अब तक आंवटित योजनाओं के अविकसित भूखंड को तत्काल विकसित कर भवन निर्माण संबंधित हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिए , जिससे उसकी धोषित योजना सही रुप में अमल हो सके। जे. डी. ए. को निजी भवन निर्माणकश्र्राओं की तरह ही अपनी हर जारी भवन निर्माण भूखंड योजनाओं के क्षेत्र में सड़क के साथ - साथ पार्क, स्कूल, अस्पताल आदि की व्यवस्था शीघ्र करने का प्रयास करना चाहिए, जिससे आंवटित भूखंडधारियों को वहां भवन निर्माण हेतु आत्मबल जागृत हो सके। तभी सरकार का सही मायने में जयपुर विकास का सपना पूरा हो सकेगा । वरना यह केवल भू मायाजाल बनकर रह जायेगा ।

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