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भारत आध्यात्म के क्षेत्र में विश्व गुरु:प्रशांत

04 मार्च 2010
प्रस्तुति-आयुष्मान प्रवीण इंसा
भारत आध्यात्म के क्षेत्र में विश्व गुरु है। लेकिन फिर भी हमारे देश का युवा अपने संस्कारों संस्कृति को नजरअंदाज कर नशे की गर्त में फंसता जा रहा है। वहीं दूसरी ओर आज़ाद भारत ने विश्व के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान कायम की है। आज विदेशों में भारतीय नागरिक अच्छे स्तर के डॉक्टर या इंजीनियर के रूप में सेवाएं प्रदान कर अपना देश का नाम रोशन कर रहे हैं। आर्ट ऑफ लीविंग के सिद्धस्थ श्री प्रशंात योग शिक्षक राजीव मेहता ने सामुदायिक रेडियो स्टेशन के निदेशक वीरेंद्र सिंह चौहान के साथ हैलो सिरसा कार्यक्रम के दौरान इन बातों पर चर्चा की। प्रशांत ने कहा कि समाज मे फैली अशांति सबसे बड़ा चिंता का विषय है। जीवन जीने की कला योग के साथ-साथ उन्होंने देश की दयनीय दशा पर चिंता व्यक्त की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के संपादित अंश:-
आर्ट ऑफ लीविंग क्या है?
जीवन जीना भी एक कला है। जीवन के सुखद क्षणों में प्रत्येक व्यक्ति खुश होता है। अगर हम दुख के क्षणों में भी सुख की अनुभूति करें, ऐसी स्थिति को ही सही मायनों में जीवन जीने ही कला कहेंगे और इस कला को सिखाने के लिए ही आर्ट ऑफ लीविंग नामक संगठन का निर्माण किया गया है। पापनाशम गांव में जन्में श्री श्रीरविशंकर ने बाल्यावस्था में ही गीता के अध्ययन योग में निपुणता हासिल की। इनका मुख्य उद्देश्य आम जनमानस को सुदर्शन क्रिया का ज्ञान करवाना है ताकि वे जिंदगी को सहज तरीके से जीना सीख सकें। सुदर्शन क्रिया क्या है? योग भारत की शक्ति है, लेकिन सुदर्शन क्रिया आभास की क्रिया है। यह क्रिया प्राणायाम से बिल्कुल भिन्न है। इस क्रिया में श्वसन क्रिया को सुचारू रूप से व्यवस्थित किया जाता है और इस क्रिया द्वारा ही शरीर को विषैले तत्वों से मुक्त किया जा सकता है। इसके द्वारा मन को भी शांत किया जा सकता है एवं व्यसन से निजात पाने के लिए भी यह क्रिया सहायक सिद्ध हुई है। यह क्रिया सर्वप्रथम श्री श्रीरविशंकर ने प्रारंभ की और वर्तमान समय में लगभग ६००० शिक्षकों की टीम विश्व में इस क्रिया का प्रसार कर रही है।
इस संस्था में आध्यात्म को किस रूप में सिखाया जाता है?
हमारे जीवन पर सात प्रकार के नकारात्मक प्रभाव होते है। काम, क्रोध,लोभ, मोह, अहंकार, मन, और माया। इनसे बचाना ही आध्यात्म का मुख्य कार्य है। इस संस्था द्वारा नव चेतना नामक शिविर लगाकर समाज का उत्थान किया जा रहा है। इन शिविरों में राम ध्यान, प्राणायाम, योगा और सामान्य नैतिक मूल्यों का ज्ञान करवाया जाता है। ये शिविर लगभग २६००० गावों में चल रहा है। सात से तेरह साल तक की आयु के बच्चों के लिए 'आर्ट एक्सल' नामक शिविर का आयोजन किया जाता है। व्यस्क लोगों के लिए 'यस प्लस' कोर्स करवाया जाता है। इसमें मुख्यत: सुदर्शन क्रिया पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसमें विभिन्न माध्यमों द्वारा जीवन जीने की कला को सीखाया जाता है। यह सभी कोर्स सात दिन के होते हैं और निरंतरता को बनाए रखने के लिए इसकी कुछ फीस भी ली जाती है।

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