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स्कूल टीचर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया का प्राथमिक शिक्षकों को आंदोलन में लाने का प्रयास

10 मार्च 2010
हिसार। स्कूल टीचर्स फैडरेशन ऑफ इंडिया के महासचिव के राजेन्द्रन और कोषाध्यक्ष सत्यापाल सिवाच ने देश के सभी शिक्षक संगठनों से शिक्षा संबंधी ज्वलन्त समस्याओं और अध्यापकों की मांगों के लिए सांझी रणनीति बनाने का आग्रह किया है। शिक्षा के विस्तार, गुणवत्ता और समता को लागू करने के लिए व्यापरीकरण को रोकने और सार्वजनिक शिक्षा ढांचे को मजबूत करने के लिए एक व्यापक और निंरतर आंदोलन खड़ा करने की आवश्यक्ता है। शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद के छ प्रतिशत, केन्द्रिय बजट के दस प्रतिशत और राज्यों के बजट के तीस प्रतिशत खर्च किए जाने की मांग तमाम शिक्षक संगठनों की ओर से उठाई जानी चाहिए। शिक्षा के अधिकार कानून को लागू करने के लिए केन्द्र द्वारा राज्यों को वित्तिय सहायता देना भी ज्वलन्त मुद्धा बनता है। अन्यथा यह कानून अमल में नहीं आ पाएगा। एस.टी.एफ.आई. के नेताओं ने केन्द्रिय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के प्रस्तावों और यशपाल समीति के सुझावों को शिक्षा के व्यापीकरण और मुनाफाखोरी को बढ़ावा देने वाला बताया। एस.टी.एफ.आई. की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य एवं हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ के महासचिव वजीर सिंह व लेखा परीक्षक सी.एन.भारती ने कहा कि कई राज्यों के प्राथमिक शिक्षकों का हरियाणा के कुरूक्षेत्र में जमा होना अच्छा संयोग है। इससे पहले सन् 1980 में कुरूक्षेत्र में ऑल इंडिया फैडरेशन ऑफ टीचर्स एसोसियशन और सन् 2008 को हिसार में एस.टी.एफ.आई. के राष्ट्रीय शिक्षक सम्मेलनो की मेजबानी का हरियाणा को मौका मिला है। उन्होंने आशा प्रकट की है इस कार्यक्रम में पूर्व प्राथमिक शिक्षा व 14 से 18 वर्ष के बच्चों की शिक्षा को भी बच्चों को निशुल्क अनिवार्य शिक्षा अधिकार कानून 2009 के दायरे में लेने, प्राईवेट स्कूलों को दायरे में लेने, प्राईवेट स्कूलों, नवोदय, केन्द्रिय और सैनिक स्कूलों को भी शिक्षा अधिकार कानून के दायरे में लाने, शिक्षा में पब्लिक प्राईवेट पार्टनरशिप न करने, अध्यापक छात्र अनुपात प्राथमिक स्तर पर एक 1:20 और उच्च स्तर पर 1:30 करने, प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का माध्यम अनिवार्यत: मातृ भाषा करने, मिड डे मील के लिए तमिलनाडू की तर्ज पर शिक्षा विभाग के अन्र्तगत स्वतन्त्र नियमित ढांचा खड़ा करने, अनुबंध- अतिथि अध्यापकों की सेवाएं नियमित करने और आगे से स्थाई भर्ती करने, उच्च शिक्षा को आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाकर सस्ता करने, निजी व विदेशी विश्वविद्यालयों और शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेष पर रोक, मदरसा व अन्य धार्मिक संस्थानों द्वारा दी जा रही शिक्षा का आधुनिकीकरण व वैज्ञानिक करण करने, बोर्ड परिक्षाएं समाप्त करने के प्रस्ताव पर पुर्न विचार आदि मांगों पर विचार मंथन होना चाहिए। इसके साथ-साथ अध्यापकों के वेतनमान, पदोन्नति और सेवानिवृति- पैन्शन आदि लाभों पर भी विचार किया जाना चाहिए। प्राथमिक शिक्षकों की ग्रेड पे कम करने का मामला भी सम्मेलन में मुद्धा बनना चाहिए। अध्यापक नेताओं का कहना है कि भले ही शिक्षक सम्मेलन के लिए विशेष अवकाश तथा आयोजन के लिए वित्तिय अनुदान अथवा सहायता द्वारा केन्द्र व राज्य सरकार सहयोग दे किन्तु यह सुविधाएं शिक्षा और शिक्षकों के हितों के लिए संघर्ष को आगे बढ़ाने में आड़े नही आनी चाहिए। हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ (सम्बद्ध एस.टी.एफ.आई. व सर्वकर्मचारी संघ) के नेताओं ने खुशी जाहिर की है कि शिक्षा संबंधी ज्वलन्त सवालों, अध्यापकों की जायज मांगों और निजी शिक्षण संस्थाओं की लूट के खिलाफ देश भर के शिक्षक, छात्र, युवा कॉलेज-यूनिवर्सिटी शिक्षक, बुद्धिजीवि और ज्ञान-विज्ञान के कार्यकर्ता एकजूट हो रहें हैं। इस बड़े अभियान में देश व प्रदेशों में कार्यरत अध्यापक संगठनों को भी सक्रियता के साथ जुडऩा चाहिए ताकि समाज और भावी पीढ़ी के प्रति अपने कत्र्तव्यों का पालन कर सकें। अध्यापक नेताओं ने पुन:आशा प्रकट है कि प्राथमिक शिक्षकों के कुरूक्षेत्र में 12-13 मार्च को होने वाले आयोजन में इस दिशा में अनुकूल निणर्य लिया जाएगा।

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