ईश्वर को पाने का मूलमंत्र है नाम: संत गुरमीत
सिरसा(न्यूजप्लॅस) गुरूमंत्र, कलमा , शबद , नाम उस परम पिता परमात्मा का नाम है, जिसने काल, महाकाल, देव, महादेव और समस्त सृष्टि का निर्माण किया है। जिसने उस भगवान, मालिक का नाम ले लिया उसे सब कुछ मिल गया। उस अनमोल नाम को लेकर उसका कितना लाभ उठाना है यह लेने वाले पर निर्भर करता है। उक्त उदगार संत गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने डेरा सच्चा सौदा में आयोजित मासिक सत्संग को संबोधित करते हुए कहे। क्षेत्र में पड़ रही कड़ाके की गर्मी व फसल कटाई का सीजन होने के बावजूद लाखो की संख्या में श्रद्धालुओं ने शिरकत की। सत्संग के प्रारंभ में संत जी ने आए हुए श्रद्धालुओ का अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा कि सर्व धर्म संगम, सभी धर्मों का सांझा तथा सभी धर्मों को मनाने वाले डेरा सच्चा सौदा में उनका स्वागत है। उन्होने आई हुई साध संगत को अपने पावन आशीर्वाद व वचनो से लाभांवित किया।
सत्संग के दौरान फरमाए भजन:-
'जिसे नाम मिला, सबकुछ है मिला, जिसे नाम न मिला कुछ भी न मिला'
की व्याख्या करते हुए संत जी ने कहा कि नाम शबद, गुरूमंत्र उस मालिक को पाने का मूलमंत्र है, जितना उसका सुमिरन करेंगे दाते तो क्या दाता भी नजर आ जाएगा। पूज्य गुरू जी ने कहा कि आज दात(दुनियावी साजो सामान) के आशिक ज्यादा है हर कोई उसे हासिल करना चाहता है लेकिन उस दाता को कोई कोई याद करता है। अगर दाता को याद करो तो दोनो जहां की खुशियां, साजो सामान हासिल हो सकता है। उन्होने कहा कि जो नाम शबद, गुरूमंत्र से खाली है, उनके पास से किसी भी तरह की उम्मीद नही की जा सकती। संत जी ने कहा कि भाग्यशाली है वो जीव जिनको नाम मिला है, वो जीवात्मा आवागमन के चक्कर से मुक्ति पाकर जीते जी सचखंड के नजारे देख सकती है। उन्होने कहा कि नाम शबद चलते बैठते, काम धंधा करते लिया जा सकता है तथा इसके लिए किसी भी तरह का धर्म, पहनावा नही बदलना पड़ता। नाम शबद गम, चिंता, परेशानी को दूर करने वाला होता है। संत जी ने कहा कि सुमिरन में बड़ी ताकत है, अगर सच्ची तड़प से भगवान, अल्लाह, मालिक को याद किसा जाए तो कण कण, जर्रे-जर्रें में मालिक के दर्शक दीदार हो सकते है। उन्होने कहा कि कर्मों के अनुसार जीव को फल मिलते है इसी लिए इस धरती को कर्मभूमि कहा गया है। उन्होने आह्वान किया कि अच्छे व नेक काम करो व दूसरो का भला करो। उन्होने कहा कि सच्चा काम मालिक को याद करना है। पूज्य गुरू जी ने कहा कि संतो के वचनो पर अमल करने से ही शांति मिलती है। संत परमार्थ करते है तथा अल्लाह, वाहेगुरू, राम की चर्चा करते है ताकि आपके भयानक कर्म कट जाए और मालिक की दया दृष्टि को पाया जा सके। उन्होने कहा कि संतों की बातों को मान ले तो जीव के वारे न्यारे हो जाते है। उन्होने कहा कि मनुष्य जीवन अनमोल है तथा इस जन्म में मालिक की भक्ति इबादत की जाए तो किसी भी चीज की कमी नही रहती। उन्होने कहा कि मन शैतान जीव को भक्ति इबादत व मालिक का नाम नही जपने देता परंतु आत्मा में इतनी ताकत होती है कि वो राम नाम रूपी चाबूक से मन को भी काबू में कर सकती है। उन्होने कहा कि जिस तरह व्यक्ति दैनिक कार्यों के लिए समय निश्चित करता है उसी तरह उसे मालिक की भक्ति इबादत के लिए भी समय निश्चित करना चाहिए। संत जी ने सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा उनसे रूहानियत संबधित लिखकर पुछे गए प्रश्नो के उतर देकर उनकी जिज्ञासाएं शांत की। सत्संग के समापन अवसर पर संत जी की पावन उपस्थिति में बिना दान दहेज के सादगी पूर्ण ढंग से कई शादियां भी करवाई गई। सत्संग के पश्चात आए हुए श्रद्धालुओ को लंगर भी वितरित किया गया। पूज्य गुरूजी ने हजारो जीवों को नाम, गुरूमंत्र की दीक्षा देकर उन्हे बुराइयां त्यागकर स्वच्छ समाज के निर्माण में सहयोग देने का आह्वान किया।
सत्संग कार्यक्रम में उपरांत पूज्य गुरू जी ने हजारो लोगों को जाम-ए-इन्सां भी पिलाया।
सत्संग के दौरान फरमाए भजन:-
'जिसे नाम मिला, सबकुछ है मिला, जिसे नाम न मिला कुछ भी न मिला'
की व्याख्या करते हुए संत जी ने कहा कि नाम शबद, गुरूमंत्र उस मालिक को पाने का मूलमंत्र है, जितना उसका सुमिरन करेंगे दाते तो क्या दाता भी नजर आ जाएगा। पूज्य गुरू जी ने कहा कि आज दात(दुनियावी साजो सामान) के आशिक ज्यादा है हर कोई उसे हासिल करना चाहता है लेकिन उस दाता को कोई कोई याद करता है। अगर दाता को याद करो तो दोनो जहां की खुशियां, साजो सामान हासिल हो सकता है। उन्होने कहा कि जो नाम शबद, गुरूमंत्र से खाली है, उनके पास से किसी भी तरह की उम्मीद नही की जा सकती। संत जी ने कहा कि भाग्यशाली है वो जीव जिनको नाम मिला है, वो जीवात्मा आवागमन के चक्कर से मुक्ति पाकर जीते जी सचखंड के नजारे देख सकती है। उन्होने कहा कि नाम शबद चलते बैठते, काम धंधा करते लिया जा सकता है तथा इसके लिए किसी भी तरह का धर्म, पहनावा नही बदलना पड़ता। नाम शबद गम, चिंता, परेशानी को दूर करने वाला होता है। संत जी ने कहा कि सुमिरन में बड़ी ताकत है, अगर सच्ची तड़प से भगवान, अल्लाह, मालिक को याद किसा जाए तो कण कण, जर्रे-जर्रें में मालिक के दर्शक दीदार हो सकते है। उन्होने कहा कि कर्मों के अनुसार जीव को फल मिलते है इसी लिए इस धरती को कर्मभूमि कहा गया है। उन्होने आह्वान किया कि अच्छे व नेक काम करो व दूसरो का भला करो। उन्होने कहा कि सच्चा काम मालिक को याद करना है। पूज्य गुरू जी ने कहा कि संतो के वचनो पर अमल करने से ही शांति मिलती है। संत परमार्थ करते है तथा अल्लाह, वाहेगुरू, राम की चर्चा करते है ताकि आपके भयानक कर्म कट जाए और मालिक की दया दृष्टि को पाया जा सके। उन्होने कहा कि संतों की बातों को मान ले तो जीव के वारे न्यारे हो जाते है। उन्होने कहा कि मनुष्य जीवन अनमोल है तथा इस जन्म में मालिक की भक्ति इबादत की जाए तो किसी भी चीज की कमी नही रहती। उन्होने कहा कि मन शैतान जीव को भक्ति इबादत व मालिक का नाम नही जपने देता परंतु आत्मा में इतनी ताकत होती है कि वो राम नाम रूपी चाबूक से मन को भी काबू में कर सकती है। उन्होने कहा कि जिस तरह व्यक्ति दैनिक कार्यों के लिए समय निश्चित करता है उसी तरह उसे मालिक की भक्ति इबादत के लिए भी समय निश्चित करना चाहिए। संत जी ने सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं द्वारा उनसे रूहानियत संबधित लिखकर पुछे गए प्रश्नो के उतर देकर उनकी जिज्ञासाएं शांत की। सत्संग के समापन अवसर पर संत जी की पावन उपस्थिति में बिना दान दहेज के सादगी पूर्ण ढंग से कई शादियां भी करवाई गई। सत्संग के पश्चात आए हुए श्रद्धालुओ को लंगर भी वितरित किया गया। पूज्य गुरूजी ने हजारो जीवों को नाम, गुरूमंत्र की दीक्षा देकर उन्हे बुराइयां त्यागकर स्वच्छ समाज के निर्माण में सहयोग देने का आह्वान किया।
सत्संग कार्यक्रम में उपरांत पूज्य गुरू जी ने हजारो लोगों को जाम-ए-इन्सां भी पिलाया।